दूर गगन इक तारा चमके
मेरी ओर निहारे,
मुझको अपने पास बुलाए
चंदा बाँह पसारे ।
पंछी अपने गीतों की
दे जाते हैं सौगातें,
वृक्ष-लता सपनों में आ
करते हैं मुझसे बातें ।
झरने दुग्ध धवल बूँदों से
मुझे भिगो देते हैं,
अपने संग माला में मुझको
फूल पिरो लेते हैं ।
कोयलिया कहती है मेरे
स्वर में तुम भी बोलो,
नदिया कहती, शीतल जल में
अपने पाँव भिगो लो ।
सारी पुष्प-कथाएँ
तितली-भौंरे बाँच सुनाते,
नन्हे-से जुगनू तम में
आशा की ज्योति जगाते ।
लहरें सागर की देती हैं
स्नेह निमंत्रण आने का,
पर्वत शिखर सदा कहते हैं
भूलो दर्द जमाने का ।
माँ की तरह प्रकृति मुझ पर
ममता बरसाती है,
अपने हृदय लगाकर मुझको
मीठी नींद सुलाती है।
वाह! अनूठा प्रयोग।
जवाब देंहटाएंआप सभी कुछ रोचक व् मर्मस्पर्शी कविताएँ पढ़ने के लिए मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं।पसन्द आएं तो फॉलो करके उत्साह बढ़ाएं।
हटाएंसादर आभार आदरणीय अयंगर सर।
हटाएंमाँ की तरह प्रकृति मुझ पर
जवाब देंहटाएंममता बरसाती है,
अपने हृदय लगाकर मुझको
मीठी नींद सुलाती है।
वाह!!!
प्रकृति की प्राकृतिक छटा सी खूबसूरत रचना...
बहि ही लाजवाब।
सादर एवं सस्नेह आभार सुधाजी।
हटाएंलहरें सागर की देती हैं
जवाब देंहटाएंस्नेह निमंत्रण आने का,
पर्वत शिखर सदा कहते हैं
भूलो दर्द जमाने का ।
बहुत खूब मीना जी,सादर नमन आपको
सादर सस्नेह आभार प्रिय कामिनी।
हटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 02-10-2020) को "पंथ होने दो अपरिचित" (चर्चा अंक-3842) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
…
"मीना भारद्वाज"
सादर एवं सस्नेह आभार आदरणीया मीनाजी।
हटाएंयह प्रकृति ही है,जो माँ के समान, सबका पोषण और रक्षण करती है.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीया दीदी।
हटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय जोशी सर।
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार एवं स्नेह अनुराधाजी।
हटाएंबहुत खूब !!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार एवं स्वागत आपका मनोज जी।
हटाएंयह प्रकृति गीत भीतर तक भिगो रही है । अति सुंदर ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार एवं स्नेह आदरणीया अमृता जी।
हटाएंहमेशा की तरह बहुत ही सुंदर मीना दी।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत आभार एवं स्नेह प्रिय अनिता।
हटाएंबहुत ही सुंदर और सराहनीय।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपके उत्साह बढ़ाते शब्दों के लिए सुजाता जी।
हटाएंसारी पुष्प-कथाएँ
जवाब देंहटाएंतितली-भौंरे बाँच सुनाते,
नन्हे-से जुगनू तम में
आशा की ज्योति जगाते बहुत बहुत सराहनीय |
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-2-22) को 'तब गुलमोहर खिलता है'(चर्चा अंक-4346)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
वाह!सराहनीय सृजन कितनी सहजता से आप अपनी बात कह देते हो। हर बंद लाज़वाब 👌
जवाब देंहटाएंसादर
चराचर जगत सहजता से गीत माला में पिरोया. सुन्दर से अति सुदर , साधुवाद आदरणीया
जवाब देंहटाएंवाह मीना जी !
जवाब देंहटाएंप्रकृति से विमुख हो कर हम सिर्फ़ सांस लेने वाली एक मशीन बन कर रह गए हैं.
आपने इस मशीन में फिर से आत्मा को प्रविष्ट कराया है.