डाल से, टूटकर गिरता हुआ
फूल कातर हो उठा।
क्यूँ भला, साथ इतना ही मिला ?
कह रहा बगिया को अपनी अलविदा,
पूछता है शाख से वह अनमना -
"क्या कभी हम फिर मिलेंगे ?"
एक तारा टूटकर, साथियों से रूठकर
चल पड़ा जाने कहाँ, एक अनंत यात्रा !
ओह ! वापस लौटना संभव नहीं !
किंतु नभ की गोद में फिर खेलने की
चाह तो बाकी रही !
सोचता है - नियति थी शायद यही,
"क्या कभी हम फिर मिलेंगे ?"
मेघ की गोदी से जब ढुलक पड़ी
बूँद एक संग हवा के बह चली,
छलक पड़ी !!!
तृप्त करने चल पड़ी सूखी मही,
मेघ को भूली नहीं !
देह छूटी, प्राण का बंधन वही !
डोर टूटी, नेह का बंधन नहीं !
विकल मन से पूछती वह मेघ से -
"क्या कभी हम फिर मिलेंगे ?"
मातृभूमि की करुण पुकार सुन
देशरक्षा देशभक्ति, यही धुन !
इसी धुन में झूमता निकल पड़ा
शत्रुओं पर सिंह सा गरज पड़ा !!!
मृत्यु के घुंगुर छ्माछम बज रहे,
कौन जाने काल किस क्षण कर गहे ?
मानता हर साँस को, अंतिम यही !
आस तो घर लौटने की भी रही।
हो रहा कर्तव्य पथ पर अग्रसर,
साथियों से पूछता है मुस्काकर -
"क्या कभी हम फिर मिलेंगे ?"
"क्या कभी हम फिर मिलेंगे ?"
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 04-09-2020) को "पहले खुद सागर बन जाओ!" (चर्चा अंक-3814) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
…
"मीना भारद्वाज"
बहुत बहुत आभार मीना जी।
हटाएंवाह!अद्भुत!!! बस अब कुछ नहीं!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय विश्वमोहन जी। आशीष के ये शब्द रचना को सफल कर गए।
हटाएंक्या कभी हम मिलेंगे ।..
जवाब देंहटाएंएक ऐसा प्रश्न जो रहता है पर प्राकृति के आगे सब का बस नहीं चलता ... अच्छी रचना ...
आदरणीय दिगंबर सर,
हटाएंबहुत बहुत आभार। आपकी प्रतिक्रिया का हमेशा इंतजार रहता है।
वाह प्रिय मीना ! आज फिर कलम बोली और ह्रदय के पट खोल गयी |
जवाब देंहटाएंअनुत्तरित पप्रश्न , जिनके उत्तर संसार सदियों से ढूंढता आया पर हर
बार हताश हुआ है इसके ना मिलने पर | यही सच है --
नश्वर ये बंध है ,
क्षणिक सब अनुबंध हैं
ना मुडती जीवनधार कभी
ना कोई समझा ये सार कभी
अत्यंत भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और स्नेह |
प्रिय रेणु, अनुबंध क्षणिक हैं यही दिमाग में बैठ जाए तो ये रचनाएँ भी क्योंकर उपजें ? इसी माया मोह की उपज हैं ये भी 😊
हटाएंबहुत सारा स्नेह। आपकी टिप्पणी का हमेशा इंतजार रहता है।
बहुत सुन्दर और मार्मिक रचना।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्रीजी, मेरे ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति पाकर मेरे उत्साह व आनंद की सीमा नहीं रहती। आशीष के लिए धन्यवाद शब्द बहुत छोटा है। सादर प्रणाम।
हटाएंबेहद खूबसूरत और हृदयस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सारे स्नेह के साथ धन्यवाद सुजाताजी।
हटाएंबहुत सुंदर और यतार्थ सवाल क्या कभी हम फ़िर मिलेंगे?
जवाब देंहटाएंबहुत सारे स्नेह के साथ धन्यवाद ज्योति जी।
हटाएंआदरणीया मीना शर्मा जी, बहुत खूबसूरत और मन को झकझोरने वाली रचना। खासकर ये पंक्तियां:
जवाब देंहटाएंदेह छूटी, प्राण का बंधन वही !
डोर टूटी, नेह का बंधन नहीं !
क्या बात है। हार्दिक साधुवाद!
मैंने आपका ब्लॉग अपने रीडिंग लिस्ट में डाल दिया है। कृपया मेरे ब्लॉग "marmagyanet.blogspot.com" को अवश्य विजिट करें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराएं। सादर!--ब्रजेन्द्रनाथ
आपका मेरे ब्लॉग पर बहुत बहुत स्वागत है आदरणीय। उत्साह बढ़ानेवाले आपके शब्द मन को अभिभूत कर गए। हृदय से आभार।
हटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय जोशी सर।
हटाएंदेह छूटी, प्राण का बंधन वही !
जवाब देंहटाएंडोर टूटी, नेह का बंधन नहीं !
विकल मन से पूछती वह मेघ से -
"क्या कभी हम फिर मिलेंगे ?"
बहुत खूब,एक ऐसा प्रश्न जिसका उत्तर संभव नहीं। एक-एक पंक्ति हृदय में उतरती हुई,लाज़बाब सृजन मीना जी,सादर नमन आपको
देर से आने की माफी चाहती हूँ।
प्रिय कामिनी, आप जब भी आओ आपका स्वागत है। माफी किसलिए ? हम स्त्रियों के लिए घर परिवार को सँभालना ज्यादा जरूरी है। कम से कम मैं तो यही समझती हूँ। आप अपनी सुविधानुसार आइए। बहुत सारा स्नेह, इस उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत आभार।
हटाएंमातृभूमि की करुण पुकार सुन
जवाब देंहटाएंदेशरक्षा देशभक्ति, यही धुन !
इसी धुन में झूमता निकल पड़ा
शत्रुओं पर सिंह सा गरज पड़ा !!!
मृत्यु के घुंगुर छ्माछम बज रहे,
कौन जाने काल किस क्षण कर गहे ?
साथियों से पूछता है मुस्काकर -
"क्या कभी हम फिर मिलेंगे ?"
वाह!!!!
हमेशा की तरह एक और नायाब सृजन आपकी रचनाएं सराहना से परे होती हैं...
बहुत ही लाजवाब।
"क्या कभी हम फिर मिलेंगे ?
प्रोत्साहन देते हुए शब्दों के लिए हृदय से आभार एवं स्नेह सुधाजी।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-2-22) को 'तब गुलमोहर खिलता है'(चर्चा अंक-4346)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
मार्मिक सृजन हृदय भर आया।
जवाब देंहटाएंबहुत ही कसा हुआ सुघड़ लेखन है आपका।
बहुत अच्छा लगा आज आपको पढ़कर।
भावों की एक रुपता सराहनीय।
सादर