मन भूलभुलैया !!!
भटकती हैं भावनाएँ
कल्पनाएँ बावरी सी
छ्टपटा रहे विचार
कौन राह निकलें ?
एक राह दूसरी से, तीसरी से,
चौथी से, पाँचवीं से.....
गुत्थमगुत्था पड़ी हैं
और सभी राहें
गुजरती हैं उसी मन से
भूलभुलैया है जो
मन भूलभुलैया !!!
मन भूलभुलैया !!!
बादलों में बादल
लताओं में लताएँ
शाखों में शाखाएँ
पहाड़ों से गिरती हुई
दुग्ध धवल धाराएँ
उलझे उलझे हैं सब
इतना उलझे हैं कि
अलग हुए तो जैसे
टूट टूट जाएँगे
चित्र सभी कुदरत के !!!
मन भूलभुलैया !!!
मन भूलभुलैया !!!
बेवजह ही फुदकती है
चिड़िया यहाँ वहाँ
झटक भीगे पंखों को
गर्दन को मोड़कर
टेढ़ा कर चोंच को
हेय दृष्टि का कटाक्ष
फेंकती है,
व्यस्त त्रस्त दुनिया के
लोगों पर !!!
उड़ जाती है फुर्र से ।
ठगी सी खड़ी - खड़ी
सोचती मैं रह जाती
मन भूलभुलैया !!!
बहुत बड़े अंतराल के बाद उपस्थिति
जवाब देंहटाएंएक अनूठी रचना के साथ।
पुनरागमन पर अभिवादन और अभिनंदन ःः
आपके शब्द अनमोल हैं मेरे लिए... आभार शब्द बहुत छोटा है सर।
हटाएंसुंदर बिम्ब!
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद आदरणीय विश्वमोहन जी। अपने पठन पाठन के कीमती समय में से समय निकालकर आप सदैव मेरा उत्साहवर्धन करते हैं।
हटाएंसार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद एवं सादर प्रणाम आदरणीय शास्त्री जी।
हटाएंबेवजह ही फुदकती है
जवाब देंहटाएंचिड़िया यहाँ वहाँ
झटक भीगे पंखों को
गर्दन को मोड़कर
टेढ़ा कर चोंच को
हेय दृष्टि का कटाक्ष
फेंकती है,
व्यस्त त्रस्त दुनिया के
लोगों पर !
दुनिया के लोग मन भूल भुलैया में जो जीते हैं
चिड़िया की कटाक्ष और हेय दृष्टि उचित भी है क्योंकि वह उन्मुक्त है मन के बंधन से...
लाजवाब सृजन।
प्रिय सुधा, बहुत सारे स्नेह के साथ धन्यवाद आपका। आपकी विस्तृत टिप्पणी बहुत उत्साह बढ़ाती है।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ४ सितंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
प्रिय श्वेता, बहुत सारे स्नेह के साथ धन्यवाद। मेरी रचनाएँ आपको पसंद आती हैं यह मेरे लिए बहुत खुशी की बात है। हृदय से आभार आपका !!!
हटाएंमन तो भूल भूलैया होता हाई है ... साधना होता है उसे ... तपस्या ज़रूरी है इसलिए ... गहरी रचना ...
जवाब देंहटाएंरचना पर आपकी प्रतिक्रिया मन को संतोष देती है। सादर आभार आदरणीय दिगंबर सर।
हटाएंबहुत सुंदर प्रिय मीना | मन के उचित - अनुचित सवालों की सशक्त अभिव्यक्ति !सस्नेह |
जवाब देंहटाएंबहुत सारे स्नेह के साथ आभार आपका प्रिय रेणु।
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय ओंकार जी। आपके शब्द सदैव मेरा उत्साहवर्धन करते हैं।
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय जोशी सर। आपके शब्द सदैव मेरा उत्साहवर्धन करते हैं।
हटाएंभावुकता से परिपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंरचना पर अपने विचार देकर उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत आभार विजयजी।
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंरचना पर अपने विचार देकर उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीय।
हटाएंइतना उलझे हैं कि
जवाब देंहटाएंअलग हुए तो जैसे
टूट टूट जाएँगे
"मन भूलभुलैया"ही तो है,खुद ही खुद को इतना उलझा लेता है कि डोर भी खींचो तो टूट जाने का डर बना रहता है
भावपूर्ण,लाज़बाब सृजन मीना जी,सादर नमन आपको
देर से आने की माफी चाहती हूँ।