शनिवार, 19 सितंबर 2020

उफ्फ ! कितना लिख रहे हैं लोग !

उफ्फ ! कितना लिख रहे हैं लोग !

लिख-लिख कर दरो दीवारों पर,

बंदूकों पर, औजारों पर,

तटबंधों पर, मँझधारों पर,

जो भी मन में हजम ना हुआ

उसकी उल्टी कर रहे हैं लोग !

उफ्फ ! कितना लिख रहे हैं लोग !!!


लिखने से पहले पढ़ भी लो,

अपने विचार को गढ़ भी लो,

चेतना शिखर पर चढ़ भी लो !!!

नशा ख्याति का, बिना पिए ही

देखो कैसे झूम रहे हैं लोग !

उफ्फ ! कितना लिख रहे हैं लोग !!!


लेखन के इन बाजारों में,

कविताओं के गलियारों में,

इन जलसों के चौबारों में,

पठनीय कहीं छुप जाता है

 बकवासों की भरमारों में !!!

समय की फिर भी कमी का

काहे रोना रो रहे हैं लोग !

उफ्फ ! कितना लिख रहे हैं लोग !!!


साधन सुलभ पहुँच के भीतर,

लिख मारो सारे पन्नों पर ,

कलम दवात की नहीं जरूरत,

हल्का होता दिल लिख-लिखकर

फिर क्यों बोझिल हो रहे हैं लोग ?

उफ्फ !!!!...............

    ( इस कविता को किसी से जोड़ा ना जाए, ये भी एक बकवास ही है )





47 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! आपकी यह रचना साबित करती है कि 'साहित्य समाज का दर्पण है' सत्य की अभिव्यक्ति।

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    1. आपका आशीष मेरी उपलब्धि है आदरणीय विश्वमोहनजी। बहुत बहुत आभार !

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  2. 🤣🤣😃😃😄😄😄😃😃🤣
    बहुत खूब प्रिय मीना, इस मधुर सी कथित 'बक़वास' के जरिये क्या खूब खिंचाई की है- हर रोज कलम घिसने वालों पर। पर सच कहूँ, ये ब्लॉग वालों के नहीं बल्कि फेसबुकिया रचनाकारों के लिए है। ब्लॉग पर तो सार्थक लेखन हो रहा है, वो भी बहुत कम ! पर --उनकी सुनो क्या कहते हैं 😄😄

    शिखर चेतना काहे चढ़ना,
    लिखने को जो ए सी कमरा है,
    बढ़िया टेबल, कंप्यूटर माउस
    बैठन को मंहगा सोफ़ा है!
    सारी दुनिया नप जायेगी
    दौड़ेंगे जब अक्ल के घोड़े,
    पढ़ना क्या? बस लिखते जाना,
    विषय कोई भी हम क्यूँ छोड़ें!
    अच्छा लगता है वाह वाह सुनना
    सो,कलम धिसाई रोज करेंगे,
    खुद की मेहनत क्या लिया किसी का? जो हम किसी सेडर-डर मरेंगे???

    बहुत बहुत शुभकामना इस हास्य कविता के लिए। मुझे तो खूब हँसाया 😃😄

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    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    2. सही कहा आपने रेणु। ब्लॉग्स पर तो मैंने भी संयत, शालीन और उपयोगी लेखन ही पाया है वैसे अपवाद तो यहाँ भी हैं। कीबोर्ड क्रांति ने लेखन के क्षेत्र में अभूतपूर्व बदलाव कर दिया है। मेरा 'उफ्फ !!!' रचनाकारों के लिए नहीं, सिर्फ लिखने के लिए कुछ भी लिखते रहनेवालों के लिए है। क्यूँ लिख रहे हैं, इससे हमारा और समाज का क्या फायदा, समाज को क्या संदेश जा रहा है इससे कोई लेना देना नहीं।
      अब बात आती है भावों की अभिव्यक्ति की। यदि कोई दुःखी भी हो तो चौबीसों घंटे रोता है क्या? प्रेम में हो तो भी हर दिन प्रेमगीत उमड़ता है क्या ?
      जिनके पास समय है लिखें, खूब लिखें। पर जब थाली में खाना ठूँस ठूँसकर भर दिया जाए और कौनसा व्यंजन कहाँ है यही पता ना चले तो खानेवाले की भूख मर जाती है। वही हाल मेरे जैसे पाठकों का हो गया है।

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 19 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आपके स्नेह व समर्थन के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीया दीदी

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  4. सच है ! किसी को किसी की सुनने की फुर्सत नहीं है पर अपनी सुनाने को सब तुले हुए हैं

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय गगन शर्मा जी

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  5. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२०-०९-२०२०) को 'भावों के चंदन' (चर्चा अंक-३०३८) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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    1. आपके स्नेह और समर्थन के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीया अनिता जी।

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    1. सादर आभार आपका अनिता जी। बहुत सारा स्नेह।

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  7. ये बकवास नहीं सही है मीना बहन एक गहन चिंतन है, और है एक संकेत ...
    बात ही बात में अप्रतिम बात।

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    1. रचना के समर्थन एवं स्नेह हेतु आपका सादर आभार आदरणीया कुसुम जी।

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  8. उत्तर
    1. मेरे ब्लॉग पर आपका हृदय से स्वागत है आदरणीय शांतनुजी। ब्लॉग को फॉलो करने हेतु भी बहुत बहुत आभार।

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  9. उत्तर
    1. सादर प्रणाम एवं धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी।

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  10. लेखन के इन बाजारों में,

    कविताओं के गलियारों में,

    इन जलसों के चौबारों में,

    पठनीय कहीं छुप जाता है
    एकदम सटीक ....आपने तो मेरे मन की बात कह दी...सच में पठनीय कहीं छुप जाता है, या यूँ कहें कि पढ पढकर मन भर जाता है।
    वाह!!!
    लाजवाब ...

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    1. सार्थक टिप्पणी के लिए हृदय से आभार एवं स्नेह सुधा जी।

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  11. किसी भी रचना को बकवास ना कहें।
    हो सकता किसी ने पहली बार लिखा हो कहीं से कुछ ज्ञान की बात टिप कर 😂😂
    मैंने भी देखा है टटपुँजिये शायरों की किताबें; वो काले पन्नों पर काले मोटे अक्षरों के फॉन्ट वाली किताब जो तोल के भाव बिकती है
    एक दिन ऐसे ही पन्ने पर चना नमकीन दाल खाई थी तभी उस पने पर लिखी दो शायरी भी पढ़ ली
    पता नहीं बाद में उबकाई होने लगी
    दाल नहीं पची या फिर वो दो शायरी कुछ कह नहीं सकते।
    😄😂

    पधारें नई रचना पर 👉 आत्मनिर्भर

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    1. बढ़िया व्यंग्य। कभी हम भी नए ही थे। बहुत सारा धन्यवाद रचना पर अपने विचार देने के लिए रोहितास जी।

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  12. उत्तर
    1. बहुत समय बाद आपको मेरे ब्लॉग पर देखकर बहुत खुशी हुई आदरणीय हर्षवर्धनजी। बहुत बहुत आभार।

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  13. बहुत सुंदर रचना मीना दी। मैं रेणु दी से पूरी तरह सहमत हूं।

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    1. बहुत सारा स्नेह एवं हृदय से धन्यवाद ज्योतिजी।

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  14. आपका मेरे ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है विनोद जी। सच में, कभी मैं लगातार दो तीन रचनाएँ डालती हूँ तो लोग मेरे बारे में भी यही कहते होंगे -
    "उफ्फ ! कितना लिख रही है ये !" 😊
    आपका हृदय से आभार !!! आगे भी आते रहें और अपने विचारों से अवगत कराते रहें।

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  15. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 07 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  16. आज फिर से पढ़कर अच्छा लगा प्रिय मीना |

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  17. सटीक व्यंग्य .... अब इस पर मैं क्या लिखूँ , सब तो लिखा गया , बस यही सोच रही कि उफ़्फ़ कितना लिख रहे लोग 😄😄😄😄

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  18. साधन सुलभ पहुँच के भीतर,

    लिख मारो सारे पन्नों पर ,

    कलम दवात की नहीं जरूरत,

    हल्का होता दिल लिख-लिखकर

    फिर क्यों बोझिल हो रहे हैं लोग ?

    एकदम सही दिल हल्का करने का अच्छा बहाना है लिख मारना

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  19. क्या बात है दी लाज़वाब👌👌
    ----
    आत्ममंथन के क्षण में
    स्वयं के भीतर झाँककर
    विचारों का पुलिंदा अवश्य खोलिये
    साहित्य साधना है कि साधन
    प्रश्न यह समयपरक
    कभी आत्मा टटोलिये
    स्वयं का विज्ञापन या
    लेखनी की सौदागरी है
    कभी स्वार्थ के लबादे का वजन तोलिये।

    प्रणाम दी।
    सादर।

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  20. दुबारा पढ़कर बहुत अच्छा लगा क्योंकि सच कभी बुरा नहीं होता...एकदम सटीक भावाभिव्यक्ति।

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  21. मीना जी, स्व-घोषित तुल्सीदासों के और प्रेमचंदों के, अधकचरे और बचकाने लेखन को बकवास कहने का महा-पाप?
    उन बेचारों का दिल टूट गया तो जुड़ेगा कैसे, क्या यह आपने कभी सोचा है?

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