उफ्फ ! कितना लिख रहे हैं लोग !
लिख-लिख कर दरो दीवारों पर,
बंदूकों पर, औजारों पर,
तटबंधों पर, मँझधारों पर,
जो भी मन में हजम ना हुआ
उसकी उल्टी कर रहे हैं लोग !
उफ्फ ! कितना लिख रहे हैं लोग !!!
लिखने से पहले पढ़ भी लो,
अपने विचार को गढ़ भी लो,
चेतना शिखर पर चढ़ भी लो !!!
नशा ख्याति का, बिना पिए ही
देखो कैसे झूम रहे हैं लोग !
उफ्फ ! कितना लिख रहे हैं लोग !!!
लेखन के इन बाजारों में,
कविताओं के गलियारों में,
इन जलसों के चौबारों में,
पठनीय कहीं छुप जाता है
बकवासों की भरमारों में !!!
समय की फिर भी कमी का
काहे रोना रो रहे हैं लोग !
उफ्फ ! कितना लिख रहे हैं लोग !!!
साधन सुलभ पहुँच के भीतर,
लिख मारो सारे पन्नों पर ,
कलम दवात की नहीं जरूरत,
हल्का होता दिल लिख-लिखकर
फिर क्यों बोझिल हो रहे हैं लोग ?
उफ्फ !!!!...............
( इस कविता को किसी से जोड़ा ना जाए, ये भी एक बकवास ही है )
वाह! आपकी यह रचना साबित करती है कि 'साहित्य समाज का दर्पण है' सत्य की अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआपका आशीष मेरी उपलब्धि है आदरणीय विश्वमोहनजी। बहुत बहुत आभार !
हटाएं🤣🤣😃😃😄😄😄😃😃🤣
जवाब देंहटाएंबहुत खूब प्रिय मीना, इस मधुर सी कथित 'बक़वास' के जरिये क्या खूब खिंचाई की है- हर रोज कलम घिसने वालों पर। पर सच कहूँ, ये ब्लॉग वालों के नहीं बल्कि फेसबुकिया रचनाकारों के लिए है। ब्लॉग पर तो सार्थक लेखन हो रहा है, वो भी बहुत कम ! पर --उनकी सुनो क्या कहते हैं 😄😄
शिखर चेतना काहे चढ़ना,
लिखने को जो ए सी कमरा है,
बढ़िया टेबल, कंप्यूटर माउस
बैठन को मंहगा सोफ़ा है!
सारी दुनिया नप जायेगी
दौड़ेंगे जब अक्ल के घोड़े,
पढ़ना क्या? बस लिखते जाना,
विषय कोई भी हम क्यूँ छोड़ें!
अच्छा लगता है वाह वाह सुनना
सो,कलम धिसाई रोज करेंगे,
खुद की मेहनत क्या लिया किसी का? जो हम किसी सेडर-डर मरेंगे???
बहुत बहुत शुभकामना इस हास्य कविता के लिए। मुझे तो खूब हँसाया 😃😄
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंसही कहा आपने रेणु। ब्लॉग्स पर तो मैंने भी संयत, शालीन और उपयोगी लेखन ही पाया है वैसे अपवाद तो यहाँ भी हैं। कीबोर्ड क्रांति ने लेखन के क्षेत्र में अभूतपूर्व बदलाव कर दिया है। मेरा 'उफ्फ !!!' रचनाकारों के लिए नहीं, सिर्फ लिखने के लिए कुछ भी लिखते रहनेवालों के लिए है। क्यूँ लिख रहे हैं, इससे हमारा और समाज का क्या फायदा, समाज को क्या संदेश जा रहा है इससे कोई लेना देना नहीं।
हटाएंअब बात आती है भावों की अभिव्यक्ति की। यदि कोई दुःखी भी हो तो चौबीसों घंटे रोता है क्या? प्रेम में हो तो भी हर दिन प्रेमगीत उमड़ता है क्या ?
जिनके पास समय है लिखें, खूब लिखें। पर जब थाली में खाना ठूँस ठूँसकर भर दिया जाए और कौनसा व्यंजन कहाँ है यही पता ना चले तो खानेवाले की भूख मर जाती है। वही हाल मेरे जैसे पाठकों का हो गया है।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 19 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपके स्नेह व समर्थन के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीया दीदी
हटाएंसच है ! किसी को किसी की सुनने की फुर्सत नहीं है पर अपनी सुनाने को सब तुले हुए हैं
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय गगन शर्मा जी
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२०-०९-२०२०) को 'भावों के चंदन' (चर्चा अंक-३०३८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
आपके स्नेह और समर्थन के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीया अनिता जी।
हटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय जोशी सर
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय ओंकार जी
हटाएंलाजवाब कर दिया सभी को
जवाब देंहटाएंसादर आभार आपका आदरणीय।
हटाएंवाह बेहतरीन भाव सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आपका सुजाता जी। सस्नेह।
हटाएंबहुत खूब कहा
जवाब देंहटाएंसादर आभार आपका अनिता जी। बहुत सारा स्नेह।
हटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंसादर,सस्नेह आभार मीनाजी।
हटाएंये बकवास नहीं सही है मीना बहन एक गहन चिंतन है, और है एक संकेत ...
जवाब देंहटाएंबात ही बात में अप्रतिम बात।
रचना के समर्थन एवं स्नेह हेतु आपका सादर आभार आदरणीया कुसुम जी।
हटाएंसुन्दर कृति - - स्पष्ट और प्रत्यक्ष।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हृदय से स्वागत है आदरणीय शांतनुजी। ब्लॉग को फॉलो करने हेतु भी बहुत बहुत आभार।
हटाएंबहुत सुन्दर और रोचक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम एवं धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी।
हटाएंलेखन के इन बाजारों में,
जवाब देंहटाएंकविताओं के गलियारों में,
इन जलसों के चौबारों में,
पठनीय कहीं छुप जाता है
एकदम सटीक ....आपने तो मेरे मन की बात कह दी...सच में पठनीय कहीं छुप जाता है, या यूँ कहें कि पढ पढकर मन भर जाता है।
वाह!!!
लाजवाब ...
सार्थक टिप्पणी के लिए हृदय से आभार एवं स्नेह सुधा जी।
हटाएंकिसी भी रचना को बकवास ना कहें।
जवाब देंहटाएंहो सकता किसी ने पहली बार लिखा हो कहीं से कुछ ज्ञान की बात टिप कर 😂😂
मैंने भी देखा है टटपुँजिये शायरों की किताबें; वो काले पन्नों पर काले मोटे अक्षरों के फॉन्ट वाली किताब जो तोल के भाव बिकती है
एक दिन ऐसे ही पन्ने पर चना नमकीन दाल खाई थी तभी उस पने पर लिखी दो शायरी भी पढ़ ली
पता नहीं बाद में उबकाई होने लगी
दाल नहीं पची या फिर वो दो शायरी कुछ कह नहीं सकते।
😄😂
पधारें नई रचना पर 👉 आत्मनिर्भर
बढ़िया व्यंग्य। कभी हम भी नए ही थे। बहुत सारा धन्यवाद रचना पर अपने विचार देने के लिए रोहितास जी।
हटाएंबढ़िया ! सटीक!
जवाब देंहटाएंबहुत समय बाद आपको मेरे ब्लॉग पर देखकर बहुत खुशी हुई आदरणीय हर्षवर्धनजी। बहुत बहुत आभार।
हटाएंबहुत सुंदर रचना मीना दी। मैं रेणु दी से पूरी तरह सहमत हूं।
जवाब देंहटाएंबहुत सारा स्नेह एवं हृदय से धन्यवाद ज्योतिजी।
हटाएंAap bhi to koi kam nhi likhi hai😊
जवाब देंहटाएंआपका मेरे ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है विनोद जी। सच में, कभी मैं लगातार दो तीन रचनाएँ डालती हूँ तो लोग मेरे बारे में भी यही कहते होंगे -
जवाब देंहटाएं"उफ्फ ! कितना लिख रही है ये !" 😊
आपका हृदय से आभार !!! आगे भी आते रहें और अपने विचारों से अवगत कराते रहें।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 07 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआज फिर से पढ़कर अच्छा लगा प्रिय मीना |
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसटीक व्यंग्य .... अब इस पर मैं क्या लिखूँ , सब तो लिखा गया , बस यही सोच रही कि उफ़्फ़ कितना लिख रहे लोग 😄😄😄😄
जवाब देंहटाएंसाधन सुलभ पहुँच के भीतर,
जवाब देंहटाएंलिख मारो सारे पन्नों पर ,
कलम दवात की नहीं जरूरत,
हल्का होता दिल लिख-लिखकर
फिर क्यों बोझिल हो रहे हैं लोग ?
एकदम सही दिल हल्का करने का अच्छा बहाना है लिख मारना
क्या बात है दी लाज़वाब👌👌
जवाब देंहटाएं----
आत्ममंथन के क्षण में
स्वयं के भीतर झाँककर
विचारों का पुलिंदा अवश्य खोलिये
साहित्य साधना है कि साधन
प्रश्न यह समयपरक
कभी आत्मा टटोलिये
स्वयं का विज्ञापन या
लेखनी की सौदागरी है
कभी स्वार्थ के लबादे का वजन तोलिये।
प्रणाम दी।
सादर।
दुबारा पढ़कर बहुत अच्छा लगा क्योंकि सच कभी बुरा नहीं होता...एकदम सटीक भावाभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंमीना जी, स्व-घोषित तुल्सीदासों के और प्रेमचंदों के, अधकचरे और बचकाने लेखन को बकवास कहने का महा-पाप?
जवाब देंहटाएंउन बेचारों का दिल टूट गया तो जुड़ेगा कैसे, क्या यह आपने कभी सोचा है?