ज्यों अर्जुन को रथ हांक्यो
प्रभु मेरी भी गाड़ी हांकिए
गोपिन को माखन चाख्यो
मेरी रूखी सूखी चाखिए।
लाल कहूँ, गोपाल कहूँ,
नंदलाल कहूँ, क्या नाम धरूँ
मेरो कोई सखा नहीं प्रभु
सखा को नातो राखिए।
करूँ समर्पण क्या मैं तोहे
योग्य तिहारे कछु ना पाऊँ,
मैं अति दीन हीन दुर्बल हूँ
स्वामी, न मोको आँकिए !
मोहिनी मूरत पर बलि जाऊँ
मन मंदिर में तोहि बसाऊँ
नजर ना लग जाए लाला,
इतनो ना सुंदर लागिए !!!
(आज गोपाल की छ्ठीपूजन पर मन के भाव )
दिल से निकली पुकार जरूर पहुंचेगी प्रभु तक
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रार्थना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (18 -8 -2020 ) को "बस एक मुठ्ठी आसमां "(चर्चा अंक-3797) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 18 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमनमोहक सृजन
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति, हमारे ब्लॉग पर भी जरूर आयें प्रेरणादायक सुविचार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भक्ति भाव से पूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंनन्द लाला के चरणों में एक प्रार्थना ... कान्हा संभाल लें जीवन की वल्गा ... सफल ही जाये जीना ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावों से भरी रचना प्रिय मीना | नंदलाला , गोपाला के चरणों में अर्पित भावों के ये मोती मन को छूने वाले हैं | सस्नेह शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्णा
जवाब देंहटाएंSatish rohatgi
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स्वरांजलि