हर जनम में,
अनगिनत जन्मों की,
अनंत यात्रा के पथ पर
तुम साथ चलो ना !
चलो लगा लें फिर फेरे,
इक दूजे को आज नए
चलो लगा लें फिर फेरे,
अग्निकुंड के नहीं,
अखिल ब्रह्मांड के !
साक्षी होंगे इस बार
वह धधकता सूर्य,
ग्रह, चाँद, तारे !
इक दूजे को आज नए
वचनों में बाँध चलो ना!
पथ पर साथ चलो ना !ना तुम अनुगामी
ना मैं अवलंबित,
एक राह के हम पथिक !
तो इक दूजे का लेकर
तो इक दूजे का लेकर
हाथों में हाथ, चलो ना !
पथ पर साथ चलो ना !
देह के दायरों से परे
मन से मन का मिलन,
नई रीत का प्रतीक !
मैं लिखूँ , तुम रचो
तुम लिखो, मैं रचूँ
नए काव्य - नए गीत !
साथी, सहयात्री बनकर,
दिन औ' रात, चलो ना !
पथ पर साथ चलो ना !!!
बहुत खूब प्रिय मीना ! कितनी मिठास और आंतरिक विश्वास भरा है इन शब्दों में -- चलो ना ! किसी के प्रति अनुरक्त मन की प्रबल आकांक्षा और स्नेहिल मनुहार -- चलो ना -- ! फेसबुक पर आई तो इस सुंदर रचना से सामना हुआ | हार्दिक शुभकामनाएं और प्यार |❤🌷यूँ ही प्रीत राग रचती रहो |😊
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