धरा के अंक में समाता
सिंदूरी सूरज,
नीड़ों को लौटती,
सफेद फूलमालाओं सी
शुभ्र बगुलों की पंक्तियाँ !
पीपल के पात-पात से
गूँजता पक्षियों का कलरव,
पेड़ों की डालियों को
हौले-हौले झकझोरकर
ना जाने कौन से राज पूछती
शरारती हवा !
दूर कहीं गूँजती - सी
मृदंग की मधुर थाप,
और तुम्हारे इंतजार में
भटकता उदास मन !
शाम और उदासी
अब पर्याय हो गए हैं
एक दूजे के !
यादों की बदलियाँ
घिर आती हैं !
मैं पलकें बंद कर लेती हूँ
शाम अब भीग रही है !!!
सिंदूरी सूरज,
नीड़ों को लौटती,
सफेद फूलमालाओं सी
शुभ्र बगुलों की पंक्तियाँ !
पीपल के पात-पात से
गूँजता पक्षियों का कलरव,
पेड़ों की डालियों को
हौले-हौले झकझोरकर
ना जाने कौन से राज पूछती
शरारती हवा !
दूर कहीं गूँजती - सी
मृदंग की मधुर थाप,
और तुम्हारे इंतजार में
भटकता उदास मन !
शाम और उदासी
अब पर्याय हो गए हैं
एक दूजे के !
यादों की बदलियाँ
घिर आती हैं !
मैं पलकें बंद कर लेती हूँ
शाम अब भीग रही है !!!
यादों की बदलियाँ
जवाब देंहटाएंघिर आती हैं !
मैं पलकें बंद कर लेती हूँ
शाम अब भीग रही है !!!
वाह ! वीतरागी मन का एकांत प्रलाप !