शुक्रवार, 2 मार्च 2018

तुम्हारी याद में....

धरा के अंक में समाता
सिंदूरी सूरज,
नीड़ों को लौटती,
सफेद फूलमालाओं सी
शुभ्र बगुलों की पंक्तियाँ !

पीपल के पात-पात से
गूँजता पक्षियों का कलरव,
पेड़ों की डालियों को
हौले-हौले झकझोरकर
ना जाने कौन से राज पूछती
शरारती हवा !

दूर कहीं गूँजती - सी
मृदंग की मधुर थाप,
और तुम्हारे इंतजार में
भटकता उदास मन !
शाम और उदासी
अब पर्याय हो गए हैं
एक दूजे के !

यादों की बदलियाँ
घिर आती हैं !
मैं पलकें बंद कर लेती हूँ
शाम अब भीग रही है !!!

1 टिप्पणी:

  1. यादों की बदलियाँ
    घिर आती हैं !
    मैं पलकें बंद कर लेती हूँ
    शाम अब भीग रही है !!!
    वाह ! वीतरागी मन का एकांत प्रलाप !

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