शुक्रवार, 16 मार्च 2018

रिश्तों का सच

कोशिश करती हूँ
सबको खुश रख सकूँ
कम से कम उनको तो
जो अपने लगते हैं !!!
विडंबना है यह....कि
तमाम कोशिशों के बाद भी
कोई ना कोई, कभी ना कभी
रूठ ही जाता है !!!
कोशिश करती हूँ
पिरोकर रख सकूँ
सारे मोतियों को एक माला में !
तमाम कोशिशों के बाद भी
एक ना एक मोती,
टूट या छूट ही जाता है !!!
रहीम जी कह गए -
रूठे सुजन मनाइए और
टूटे मुक्ताहार पिरोते रहिए....
रहीमजी, क्या आपकी ये सीख
इस जमाने में भी लागू होती है ?
जहाँ मशीनें मोतियों पर
हावी हो गई हैं 
और रिश्ते,नफे-नुकसान के
तराजू पर तौले जाते हैं !
जहाँ प्यार दिखावा है
और संबंध नाटक !
उस धागे का क्या हश्र
जो उन मोतियों को
पिरोने की कोशिश में
आखिरी साँसें गिन रहा है !!!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें