शनिवार, 24 मार्च 2018

तिश्नगी

तेरे अहसास में खोकर तुझे जब भी लिक्खा,
यूँ लगा,लहरों ने साहिल पे 'तिश्नगी' लिक्खा !

मेरी धड़कन ने सुनी,जब तेरी धड़कन की सदा,
तब मेरी टूटती साँसों ने 'ज़िंदगी' लिक्खा !

रात, आँखों के समंदर में घुल गया काजल
चाँद के चेहरे पे बादल ने 'तीरगी' लिक्खा !

इस मुहब्बत के हर इक दर्द का जिम्मा उसका,
जिसने पहले-पहल,ये लफ्ज 'आशिकी' लिक्खा !

हर तरफ तुझको ही ढूँढ़े है, निगाहें बेताब
एक बुत के लिए, अश्कों ने 'बंदगी' लिक्खा !
                                         - मीना शर्मा -

तिश्नगी /तश्नगी - प्यास
तीरगी - अंधेरा
बुत - मूर्ति
बंदगी - इबादत 

10 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २२ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. वाह !वाह !प्रिय मीना दी लाज़बाब सृजन
    सादर

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(18-7-21) को "प्रीत की होती सजा कुछ और है" (चर्चा अंक- 4129) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  4. मेरी धड़कन ने सुनी,जब तेरी धड़कन की सदा,
    तब मेरी टूटती साँसों ने 'ज़िंदगी' लिक्खा !
    वाह , एहसासात से लबरेज़ खूबसूरत ग़ज़ल

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  5. रात, आँखों के समंदर में घुल गया काजल
    चाँद के चेहरे पे बादल ने 'तीरगी' लिक्खा !
    लाजवाब सृजन ।

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