तेरे अहसास में खोकर तुझे जब भी लिक्खा,
यूँ लगा,लहरों ने साहिल पे 'तिश्नगी' लिक्खा !
मेरी धड़कन ने सुनी,जब तेरी धड़कन की सदा,
तब मेरी टूटती साँसों ने 'ज़िंदगी' लिक्खा !
रात, आँखों के समंदर में घुल गया काजल
चाँद के चेहरे पे बादल ने 'तीरगी' लिक्खा !
इस मुहब्बत के हर इक दर्द का जिम्मा उसका,
जिसने पहले-पहल,ये लफ्ज 'आशिकी' लिक्खा !
हर तरफ तुझको ही ढूँढ़े है, निगाहें बेताब
एक बुत के लिए, अश्कों ने 'बंदगी' लिक्खा !
- मीना शर्मा -
तिश्नगी /तश्नगी - प्यास
तीरगी - अंधेरा
बुत - मूर्ति
बंदगी - इबादत
- मीना शर्मा -
तिश्नगी /तश्नगी - प्यास
तीरगी - अंधेरा
बुत - मूर्ति
बंदगी - इबादत
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२२ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
वाह !वाह !प्रिय मीना दी लाज़बाब सृजन
जवाब देंहटाएंसादर
बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंवाह, बेहतरीन
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब...
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(18-7-21) को "प्रीत की होती सजा कुछ और है" (चर्चा अंक- 4129) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
मेरी धड़कन ने सुनी,जब तेरी धड़कन की सदा,
जवाब देंहटाएंतब मेरी टूटती साँसों ने 'ज़िंदगी' लिक्खा !
वाह , एहसासात से लबरेज़ खूबसूरत ग़ज़ल
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंवाह लाजबाव
जवाब देंहटाएंरात, आँखों के समंदर में घुल गया काजल
जवाब देंहटाएंचाँद के चेहरे पे बादल ने 'तीरगी' लिक्खा !
लाजवाब सृजन ।