बुधवार, 7 मार्च 2018

औरत


समय की धारा से,लड़कर

पार होना आ गया,
अपनी नौका की स्वयं
पतवार औरत !!!

काव्य में वह करूणरस,

है राग में वह भैरवी,
साज़ में मुरली मधुर
सितार औरत !!!

रेशमी धागों सी नाजुक

पुष्प सी कोमल सही,
गर उठी कुदृष्टि तो,
अंगार औरत !!!

चूड़ियों वाली कलाई

इतनी भी कमसिन नहीं,
वक्त आए, थाम ले
तलवार औरत !!!

द्रौपदी, सीता, अहिल्या

जब बनी, तब क्या मिला ?
आज दुर्गा, शक्ति का
अवतार औरत !!!

तिलमिलाता क्यों, ना जाने

शक्ति का पूजक समाज,
माँगती है अपने जब,
अधिकार औरत !!!

1 टिप्पणी:


  1. तिलमिलाता क्यों, ना जाने
    शक्ति का पूजक समाज,
    माँगती है अपने जब,
    अधिकार औरत !!!
    सरल शब्दों में सहज सृजन | ये प्रश्न सदियों से अनुत्तरित रहा है | शायद भविष्य में कभी इसका जवाब मिल जाए | हार्दिक शुभकामनाएं|

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