शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

हद हो गई !

हमने इक पत्थर उठा, मंदिर में मन के रख लिया,
लोग कहते हैं हमारे, प्यार की हद हो गई....

आँख मूँदे, हाथ थामे, साथ तेरे  चल पड़े
अजनबी एक शख्स पर, ऐतबार की हद हो गई...

हाँ, कि दिल जलता है ग़र तुम दूसरों को देख लो
ये तुम्हारे पर मेरे इख़्तियार की हद हो गई...

देखकर हमको, तेरा वो मुँह घुमा लेना सनम !
बेरुखी तेरी, दिले - बेज़ार की हद हो गई....

जिस्म की मंडी लगी, रूहों का सौदा हो गया,
जब मोहब्बत बिक गई, व्यापार की हद हो गई....

राह तकता रह गया था, चाँद की कोई चकोर
वो अमावस रात थी, इंतज़ार की हद हो गई....




1 टिप्पणी:

  1. जिस्म की मंडी लगी, रूहों का सौदा हो गया,
    जब मोहब्बत बिक गई, व्यापार की हद हो गई....
    राह तकता रह गया था, चाँद की कोई चकोर
    वो अमावस रात थी, इंतज़ार की हद हो गई....

    प्रिय मीना , आज अनायास यूँ ही बीते दिनों में झाँकने के लिए आपके ब्लॉग पर स्वछन्द भ्रमण किया | निशब्द रह गयी ये कुछ रचनाएँ पढ़कर सहसा ब्लॉग्गिंग का वो स्वर्णिम समय स्मरण हो आया | बहुत भावुक कर देने वाली रचनाएं पढ़ी | इस लेखनी की प्रांजलता अमर हो यही दुआ करती हूँ |

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