रविवार, 17 सितंबर 2017

स्पंदन - विहीन !

ओ रंगीले भ्रमर !
कैसे स्वागत करती तुम्हारा ?
लाख कोशिशों से भी मुझे,
कुमुदिनी बनना न आ सका !
कंटकों के बीच जन्मी
कुसुम कलिका तो थी मैं,

किंतु.....
नागफनी का पुष्प बनकर
खिलना भी कोई खिलना है ?
गंध - मरंद विहीन !!!

ओ मेरे हृदय !
नहीं सीख पाई मैं,
तुम्हारी धड़कन बनकर गूँजना !
साँसों में समाकर, रक्त में घुलकर,
तुमको छूकर निकलती रही,
क्षण प्रतिक्षण !!!

किंतु......
गीत ना बन सकी धड़कनों का !
खामोश साँसों का
संगीत भी कोई संगीत है ?
प्रतिध्वनि विहीन !!!

ओ मेरे कवि !
नहीं बन पाई मैं,
तुम्हारी प्रेरणा, आराधना !
मैं तुम्हारी कलम की स्याही बन
थामती, सँभालती रही तुम्हारी,
भावनाओं के ज्वार को !!!

किंतु.....
स्थान मेरा सदा ही,
तुम्हारी नजरों के दायरे में रहा,
मन मस्तिष्क में नहीं !
बेजान अहसासों के साथ,
जीना भी कोई जीना है ?
स्पंदन विहीन !!!












7 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २२ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. बहुत ही सुन्दर हृदय स्पर्शी रचना दी
    सादर

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  3. लाख कोशिशों से भी मुझे,
    कुमुदिनी बनना न आ सका !
    कंटकों के बीच जन्मी
    कुसुम कलिका तो थी मै...।
    वाह!!!
    हमेशा की उत्कृष्ट सृजन...

    जवाब देंहटाएं
  4. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की शनिवार(२९-०२-२०२०) को शब्द-सृजन-१० ' नागफनी' (चर्चाअंक -३६२६) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  5. ओ मेरे हृदय !
    नहीं सीख पाई मैं,
    तुम्हारी धड़कन बनकर गूँजना !
    साँसों में समाकर, रक्त में घुलकर,
    तुमको छूकर निकलती रही,
    क्षण प्रतिक्षण

    अति सुंदर भाव ,हृदय के एक एक तार को स्पर्श कर गई आपकी रचना ,सराहना सर परे है ,निःशब्द हूँ मैं
    सादर नमन आपकी लेखनी को मीना जी

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  6. लाजवाब सृजन मीना जी बहुत सुंदर हृदय को छूता सा ।
    अभिनव।

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