बुधवार, 9 अगस्त 2017

उम्मीद

अंधकार दूर हो,
उम्मीद हो उजास की !
विकास की घड़ी में बात
मत करो विनाश की।।

भिन्न-भिन्न, दूर-दूर,
हम रहे कई सदी,
दुश्मनों को देश की,
बागडोर सौंप दी ।

अब मिटा दो दूरियाँ,
जोड़ दो कड़ी-कड़ी
ना रहे कोई प्रथा,
भेदभाव से जुड़ी ।

अब नई हवा बहे,
एक प्राण-श्वास की !
विकास की घड़ी में बात,
मत करो विनाश की।।

हर किसान, हर जवान
की व्यथा का अंत हो
भूख की, अभाव की,
करूण कथा का अंत हो।

वक्त से पहले मिटें ना,
बचपने की मस्तियाँ
क्रूर पंजों में फँसें ना,
बुलबुलें औ' तितलियाँ ।

जुगनुओं से भी मिले,
इक किरण प्रकाश की !
विकास की घड़ी में बात
मत करो विनाश की ।।

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