गुरुवार, 24 अगस्त 2017

कबूल है हार !

उफ ! ये अभिमान !
प्रेम के दाता होने का
सर्वज्ञ ज्ञाता होने का !

गैरों को खुशियों की
भीख बाँटने का !
उड़ते पंछी के पर
काटने का !!!

फटेहाल सुदामा जाने
स्नेह की ही रीत !
बावरी मीरा तो गाए
प्रेम के ही गीत !!!

मन तेरा ना स्वीकारे
गर्व से भरा !!!
अश्रूबिंदु ना कभी
आँख से गिरा !!!

प्यार के खजाने का
मालिक हुआ,
अपने ही स्वत्व में
गाफिल हुआ !!!

भूल गया नेह के
सागर की गहराई !
भावनाओं की तुच्छ भेंट
ठोकर से ठुकराई !!!

अंत समय कौन क्या
साथ ले जाएगा ?
वक्त हम सभी को
यही सिखाएगा !!!

जीवन में प्रेम से
बड़ा नहीं उपहार !
प्रेम में कबूल है
मुझे अपनी हार !!!

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