शनिवार, 5 अगस्त 2017

कैसे ?


जाने बदला क्यूँ रुख हवाओं का,
मिजाज़ रुत का भी है बदला सा !
प्यार का फलसफा सदियों से वही
वक्त के साथ हम बदलें कैसे ?

आज बच्चे सी मचलकर आती
ज़िद्दी यादों को थाम ले कोई !
द्वार पर दे रहीं दस्तक मन के,
लौट जाने को भी कहें कैसे ?

एक पंछी को रोज देखा है,
बातें करते हुए दरख्त के संग !
नाम दोनों के पाक रिश्ते का,
कोई पूछे तो बताएँ कैसे ?

हमने बादल से गुज़ारिश की है,
बरस जाए वो, जमीं पर दिल की!
कोई कदमों के निशां छोड़ गया,
अपने अश्कों से मिटाएँ कैसे ?

गर वो कह दें, कि अब चले जाओ
लौट जाएँगे उनकी महफिल से !
जान देकर वफ़ा निभा देंगे,
अब कहो, और निभाएँ कैसे ?

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5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 25 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आदरणीया यशोदा दीदी, बहुत आभार इस रचना को हमकदम में लेने के लिए।

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  2. हमने बादल से गुज़ारिश की है,
    बरस जाए वो, जमीं पर दिल की!
    कोई कदमों के निशां छोड़ गया,
    अपने अश्कों से मिटाएँ कैसे ?
    अंतस की वेदना का विस्फोट!

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  3. हृदयस्पर्शी रचना मीना जी

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  4. हमने बादल से गुज़ारिश की है,
    बरस जाए वो, जमीं पर दिल की!
    कोई कदमों के निशां छोड़ गया,
    अपने अश्कों से मिटाएँ कैसे ?

    बहुत खूब..... हृदयस्पर्शी सृजन सखी ,एक एक शब्द अंतःकरण में उतर गए ,सादर

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