आर्द्र नयन, शुष्क मन !
कैसे करूँ मैं नव सृजन ?
पूर्णता में रिक्तता,
अलिप्तता में लिप्तता,
विस्मृति में है स्मृति
जागृति में है शयन !
कैसे करूँ मैं नव सृजन ?
जय में पराजय लगे,
राग में विराग है
है मूक मौन वक्तृता
हास्य में छुपा रुदन !
कैसे करूँ मैं नव सृजन ?
विकास में विनाश है,
तृप्ति में भी प्यास है
वह मार्ग कौन सा कहाँ?
जिसका करूँ मैं अनुगमन !
कैसे करूँ मैं नव सृजन ?
कैसे करूँ मैं नव सृजन ?
पूर्णता में रिक्तता,
अलिप्तता में लिप्तता,
विस्मृति में है स्मृति
जागृति में है शयन !
कैसे करूँ मैं नव सृजन ?
जय में पराजय लगे,
राग में विराग है
है मूक मौन वक्तृता
हास्य में छुपा रुदन !
कैसे करूँ मैं नव सृजन ?
विकास में विनाश है,
तृप्ति में भी प्यास है
वह मार्ग कौन सा कहाँ?
जिसका करूँ मैं अनुगमन !
कैसे करूँ मैं नव सृजन ?
प्रतिकूल परिस्थिति में बड़ी से बड़ी बाधा का सामना करते हुए भी नव-सृजन संभव है. बस, हारिए न हिम्मत, बिसारिए न हरि-नाम.
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