याद आता है, कहीं था
सरल-सिमटा गाँव कोई !
सर छिपाकर रो सकें, था
एक ऐसा ठाँव कोई !
जिस गली में तुम रहा करते थे,
अब बाजार है वह ।
मोल कोई है लगाता,
पूछता है भाव कोई !
चहकता था यह पुलिन
अल्हड़ हँसी के गूँजने से ।
बह गया जल, शुष्क तट पर
अब नहीं है नाव कोई !
वर्षभर रहता यहाँ है,
अब तो मौसम पतझड़ों का।
रह गए हैं ठूँठ सारे
ले गया सब छाँव कोई !
कंटकों में थी कहाँ, क्षमता
हृदय को चीरने की।
छ्द्म स्मित कर, दे गया है
फूल बनकर घाव कोई !
प्राण की चौपड़ बिछी है,
श्वास के पासे पड़े हैं,
दाँव पर जीवन लगाकर
खेलता है दाँव कोई !
ला जवाब शब्द शिल्प ।
जवाब देंहटाएंअनमोल रचना।
साझा करने हेतु आभार।
सादर आभार
हटाएंकंटकों में थी कहाँ, क्षमता
जवाब देंहटाएंहृदय को चीरने की।
छ्द्म स्मित कर, दे गया है
फूल बनकर घाव कोई !
निशब्द हूं मीना जी इस रचना को पढ़कर, एक एक शब्द हृदय को द्रवित कर रहा है , आप की लेखनी को मां सरस्वती का वरदान है, उनकी कृपा हमेशा आप पर बनी रहे यही कामना करती हूं।
सप्रेम आभार
हटाएंगाँव की बदलती हुई तस्वीर का जीवंत चित्रण !
जवाब देंहटाएंसादर आभार
हटाएंजीवन के अग्नि वन में
जवाब देंहटाएंशीतल फुहार सा भिगोता था
काठ का खिलौना बना के
जलाता है मन कोई...
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क्या गज़ब के भाव उकेरे हैं दी
हर पंक्ति मन पर गहरा प्रभाव छोड़ रही दी।
मन से लिखी रचना मन छू रही।
सस्नेह
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३० दिसंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सस्नेह आभार
हटाएंप्राण की चौपड़ बिछी है,
जवाब देंहटाएंश्वास के पासे पड़े हैं,
दाँव पर जीवन लगाकर
खेलता है दाँव कोई !
बहुत सही। . समय के साथ कितना कुछ बदल जाता है,
सादर आभार कविता जी
हटाएंसर छिपाकर रो सकें, था
जवाब देंहटाएंएक ऐसा ठाँव कोई !
हँसने बोलने की जगह बहुत हैं बस रोने का ठाँव हो
वाह!!!
कंटकों में थी कहाँ, क्षमता
हृदय को चीरने की।
छ्द्म स्मित कर, दे गया है
फूल बनकर घाव कोई !
क्या बात....
बहुत ही लाजवाब सृजन
👏👏🙏🙏
सस्नेह आभार सुधाजी
हटाएंएक बार फिर से शानदार प्रस्तुति के लिए बधाई प्रिय मीना।भावविहल हृदय के मार्मिक उद्गार अन्तस को छू कर भावुक कर गये।निसन्देह शब्द शिल्प और भावों की गहनता अत्यंत प्रभावी और सराहनीय है।जीवन में अप्रत्याशित परिवर्तन से अक्सर असहनीय पीड़ा से सामना करना पड़ता है तो भीतर ही भीतर चल रहे प्रश्नों का उत्तर अक्सर नहीं मिलता।लिखती रहो माँ सरस्वती सबको ये हुनर नहीं प्रदान करती।सस्नेह ♥️
जवाब देंहटाएंआप आए, बहार आई। प्रिय रेणु, बहुत सारा प्यार और शुक्रिया। नववर्ष की शुभकामनाओं सहित।
हटाएंनववर्ष की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।आगत का स्वागत है।ये सभी के लिए मंगलमय और शुभता भरा हो यही दुआ है 🙏♥️
जवाब देंहटाएंमन को मथ गई ये पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंवर्षभर रहता यहाँ है,
अब तो मौसम पतझड़ों का।
रह गए हैं ठूँठ सारे
ले गया सब छाँव कोई !👌👌👌👌
कंटकों में थी कहाँ, क्षमता
जवाब देंहटाएंहृदय को चीरने की।
छ्द्म स्मित कर, दे गया है
फूल बनकर घाव कोई !
चेहरे अक्सर धोखा दे देते हैं । दिल को छू लेने वाली रचना । नए वर्ष में बसंत की उम्मीद करें ।
आप सभी का हृदयपूर्वक हार्दिक धन्यवाद जो आपने अपना कीमती समय निकालकर रचना को पढ़ा और सराहा भी....
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