जितना बूझूँ, उतना उलझें
एक पहेली जैसे रिश्ते।
स्नेह दृष्टि की उष्मा पाकर,
पिघल - पिघलकर रिसते रिश्ते।
कभी लहू - से सुर्ख रंग के,
कभी हरे हैं हरी दूब - से ।
कभी प्रेम रंग रंगे गुलाबी ,
पल - पल रंग बदलते रिश्ते।
माटी में मिल वृक्ष उगाते
अँखुआए बीजों - से रिश्ते ।
खुशबू बनकर महक रहे हैं,
चंदन जैसा घिसते रिश्ते।
बूँदें बनकर सिमट गए हैं,
नयनों की गीली कोरों में ,
दो मुट्ठी अपनापन पीकर
सारी उम्र बरसते रिश्ते ।
पतझड़ के पत्तों सम झरते,
नवपल्लव से तरु भरने को ।
अपने प्रिय के हित की खातिर
स्वयं मृत्यु को वरते रिश्ते ।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 20 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
कभी लहू - से सुर्ख रंग के,
जवाब देंहटाएंकभी हरे हैं हरी दूब - से ।
कभी प्रेम रंग रंगे गुलाबी ,
पल - पल रंग बदलते रिश्ते।
रिश्तों को परिभाषित करती अत्यंत सुन्दर कृति मीना जी !
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (२१-११-२०२२ ) को 'जीवन के हैं मर्म'(चर्चा अंक-४६१७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आदरणीया मैम, रिश्तों की मिठास और महत्व को दर्शाती बहुत ही भावपूर्ण रचना। सादर प्रणाम
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंरिश्तों की सच्चा अर्थ समझती बहुत सुंदर सराहनीय रचना ।
आपकी लिखी रचना सोमवार 28 नवम्बर 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
आदरणीया मैम, आपकी यह रचना पहले भी पढ़ी है, आज पुनः पढ़ कर आनंदित हूँ । सम्बन्धों की सुंदरता और मिठास से भरी हुआ रचना। इसे पढ़ कर ही मन स्नेह से भर जाता है। हार्दिक आभार एवं सादर प्रणाम। एक नया लेख डाला है अपनी डायरी में , कृपया पढ़ कर आशीष दें।
जवाब देंहटाएंजितना बूझूँ, उतना उलझें
जवाब देंहटाएंएक पहेली जैसे रिश्ते।
वाकई एक पहेली से ही होते हैं रिश्ते... अब कोन बूझ पाये और किसी सेअबूझे ही रह जाते हैं ये रिश्ते... समय और किस्मत पर भी निर्भर रहते हैंहे रिश्ते ...
बहुत ही लाजवाब सृजन
वाह!!!
हृदयस्पर्शी रचना दी।
जवाब देंहटाएंकुछ पंक्तियाँ आपकी रचना पर-
रिश्ते बाँधे नहीं जा सकते
बस छुये जा सकते है
नेह के मोहक एहसासों से
स्पर्श किये जा सकते है
शब्दों के कोमल उद्गारों से
रिश्ते दरख्त नहीं होते है
लताएँ होती है जिन्हें
सहारा चाहिए होता है
भरोसे के सबल खूँटों का
जिस पर वो निश्चिंत होकर
पसर सके मनचाहे आकार में..।
सादर
स्नेह
एहसासों का पुलिंदा!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
बूँदें बनकर सिमट गए हैं,
जवाब देंहटाएंनयनों की गीली कोरों में ,
दो मुट्ठी अपनापन पीकर
सारी उम्र बरसते रिश्ते ।👌👌👌
प्रिय मीना, रिश्तों से जुड़ी हर अनुभूति पर विहंगम दृष्टिपात किया है आपने।रिश्तों के लिए ही इन्सान जीता है संसार में।और यही इनमें संतुलन ना हो तो कहीं न कहीं इन्सान अनगिन प्रश्नों से दोचार होता बहुत पीड़ा में जीता है।पर रिश्तों की यही धूप-छाँव ही तो हर किसी को सही अर्थों में दुनियादारी का सबसे रोचक और सटीक पाठ पढाती है।सस्नेह ----