रविवार, 4 दिसंबर 2022

शिकवा

ना जाने किसको देखकर फितरत बदल गई
पल में बदल गया समां, जो रुत बदल गई । 

क्यों नजर चुराएँ, हमने क्या गुनाह किया ?
हम तो वही हैं, तेरी मुहब्बत बदल गई ।

अच्छा हुआ आगाह कर दिया जनाब ने
ये सोचकर चुप रह गए, आदत बदल गई ।

दीवार बन के वक्त बीच में खड़ा रहा
जब तक हटाएँ हम उसे, किस्मत बदल गई ।

बातों की क्या कहें, ये हवा के महल सी हैं
लफ्जों के हेर फेर से, अक्सर बदल गईं ।

ख्वाबों में खत लिखे थे उन्हें, ख्वाब ही थे वो
ख्वाबों के टूटते ही,  इबारत बदल गई ।
 
तस्वीर थी कोई जो, बसा रखी थी दिल में
उतरा जो रंग, यार की सूरत बदल गई ।

मौसम के बदलने से, बदलता है बहुत कुछ,
बदला नहीं वो, उसकी जरूरत बदल गई ।

 


14 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 06 दिसम्बर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. जिंदगी की अनुभूतियों और अहसासों पर खूबसूरत ग़ज़ल।बधाई मीना जी ।

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  3. न उम्र की सीमा है न उम्र का बंधन
    तेरी नियत बदलनी थी , तो वो बदल गयी ।

    न जाने कितनों के छाले फूटे इस ग़ज़ल में ।
    लाजवाब ।

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  4. आप सभी का बहुत बहुत आभार। आँखों में तकलीफ होने की वजह से ब्लॉग जगत से कुछ समय के लिए मुझे दूर जाना पड़ेगा। शायद एक महीने बाद वापसी हो।

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  5. तस्वीर थी कोई जो, बसा रखी थी दिल में
    उतरा जो रंग, यार की सूरत बदल गई ।

    मौसम के बदलने से, बदलता है बहुत कुछ,
    बदला नहीं वो, उसकी जरूरत बदल गई

    ऐसे रंग बदलने वाले समां भी अपने अनुसार बदल देते हैं....
    वाह!!!!
    बहुत ही लाजवाब।

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  6. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (8-12-22} को "घर बनाना चाहिए"(चर्चा अंक 4624) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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  7. मौसम के बदलने से, बदलता है बहुत कुछ,
    बदला नहीं वो, उसकी जरूरत बदल गई ।

    वाह!! वैसे हर अश्यार अपने आप में मुक्कमल है

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  8. स्वीर थी कोई जो, बसा रखी थी दिल में
    उतरा जो रंग, यार की सूरत बदल गई ।

    मौसम के बदलने से, बदलता है बहुत कुछ,
    बदला नहीं वो, उसकी जरूरत बदल गई ।

    . .. बहुत खूब!

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  9. मौसम के बदलने से, बदलता है बहुत कुछ,
    बदला नहीं वो, उसकी जरूरत बदल गई ।////
    प्रिय मीना, एक से बढ़कर एक शेरों से सजी रचना मन को छू कर निकल गई।यूँ तो संसार में हर वस्तु बदलती रहती है पर किसी खास इन्सान को बदलना दूसरे इन्सान को भीतर ही भीतर दावानल-सी कितनी पीड़ा देता है यह कोई भुक्तभोगी ही जान सकता है।मर्म को छूती हुई एक बहुत ही नायाब रचना !

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  10. आदरणीया मीना शर्मा जी ! नमस्कार !
    लफ्जों के हेर फेर से, ... वाकई शब्दों का ही हेरफेर जान पड़ती है जिंदगी कभी कभी
    सभी शेर मुक़म्मल बन पड़े है ,
    बहुत अभिनन्दन !
    जय श्री कृष्ण !

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  11. आज देखा। वाह ! क्या सुंदर प्रस्तुति है।

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  12. आप सभी का हृदयपूर्वक हार्दिक धन्यवाद जो आपने अपना कीमती समय निकालकर रचना को पढ़ा और सराहा भी....

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