गुरुवार, 4 अप्रैल 2019

समय ना मिला....

सारे संसार के काम करता रहा,
तेरे सुमिरन का मुझको समय ना मिला !
सारी दुनिया से नाता निभाता रहा,
तुझसे मिलने का मुझको समय ना मिला !

सुबह आती रही, शाम जाती रही,
ज़िंदगी खेल अपने दिखाती रही,
तेरी भक्ति कहाँ से शुरू मैं करूँ,
इसी उलझन में मुझको समय ना मिला !
तुझसे मिलने का.....

मिट गए रात दिन, बुलबुलों की तरह
देह मुरझाई सूखे गुलों की तरह,
फिर भी जागा नहीं, मोह त्यागा नहीं,
तेरे दर्शन का मुझको समय ना मिला !
तुझसे मिलने का....

खेत चिड़िया ने जब चुग लिया, चुग लिया !
माया ठगिनी ने जब ठग लिया, ठग लिया !
भर गया तब घड़ा, काल सम्मुख खड़ा !
हाय ! बचने का मुझको समय ना मिला !!!
तुझसे मिलने का.....

8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह !!!
    एक एक शब्द तौल तौल कर रखा है आपने.
    अनमोल है यह कविता.
    साझा करने.हेतु आभार.
    अयंगर

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  2. आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति 540वीं जयंती - गुरु अमरदास और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।

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  3. बिलकुल सच...सभी कार्यों के लिए हमारे पास समय होता है केवल प्रभु को याद करने के...

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  4. समय को लेकर बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, मीना दी।

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  5. ये सच है जीवन के निरर्थक कार्यों में इंसान लगा रहता है और किसी एक समय जब समय निकल चुका होता है उसे याद आता है ... पर शायद तब भी देर नहीं हुयी होती ... इश्वर तब भी अपना लेता है ... मन की चाह जरूरी है ...
    सुन्दर रचना है ... भावपूर्ण और प्रेरित करती है ...

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  6. बहुत ही सुंदर रचना ,यही मानव जीवन की बिड़बना है , सादर स्नेह मीना जी

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