शनिवार, 13 अप्रैल 2019

मानव, तुम्हारा धर्म क्या है ?

धर्म चिड़िया का,
खुशी के गीत गाना  !
धर्म नदिया का,
तृषा सबकी बुझाना ।
धर्म दीपक का,
हवाओं से ना डरना !
धर्म चंदा का,
सभी का ताप हरना ।।

किंतु हे मानव !
तुम्हारा धर्म क्या है ?

धर्म तारों का,
तिमिर में जगमगाना !
धर्म बाती का,
स्वयं जल,तम मिटाना ।
धर्म वृक्षों का,
जुड़े रहना मृदा से !
धर्म फूलों का,
सुरभि अपनी लुटाना ।।

किंतु हे मानव !
तुम्हारा धर्म क्या है ?

धर्म चींटी का,
बताना मर्म श्रम का !
धर्म सूरज का,
अधिक ना तप्त होना ।
धर्म सागर का,
रहे सीमा में अपनी !
धर्म मेघों का,
बरसकर रिक्त होना ।।

किंतु हे मानव !
तुम्हारा धर्म क्या है ?

धर्म पर्वत का,
अचल रहना हमेशा !
धर्म ऋतुओं का,
धरा को रंग देना ।
धर्म धरती का,
उठाना भार सबका !
धर्म नभ का है,
विहग को पंख देना ।।

किंतु हे मानव !
तुम्हारा धर्म क्या है ?
 --- मीना शर्मा ---

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना सोमवार 15 अप्रैल 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. किंतु हे मानव !
    तुम्हारा धर्म क्या है ?
    बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल ,सादर नमस्कार आप को

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 13/04/2019 की बुलेटिन, " १०० वीं बरसी पर जलियाँवाला बाग़ कांड के शहीदों को नमन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. मानवता धर्म नहीं है बस।

    सुन्दर रचना।

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  5. शाश्वत प्रश्न उकेरा है

    बहुत सुंदर

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  6. सही कहा मीना बहन हर वस्तु हर शै का अपना धर्म है सारी सृष्टि वस्तु धर्म पर चलती है पर मानव जो कि सर्व श्रेष्ठ है उसे पता ही नही उसका धर्म क्या है ।
    सुंदर सार्थक चिंतन देती रचना।

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  7. मानव ने तो धर्म की परिभाषा ही बदल दी है,
    बहुत ही सुन्दर सार्थक लाजवाब रचना...

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  8. मानव जिसे अपनी भ्रमित संस्कृति पर गर्व है, उनके लिए यह तमाचा है रचना। बहुत अच्छी तुलनात्मक उपमाएं ..

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