गुरुवार, 28 मार्च 2019

तू गा रे ! साँझ सकारे !!!

ओ मांझी ! तेरे गीत बड़े प्यारे !
तू गा रे ! साँझ सकारे !!!
लहरों के मीत,गीतों में प्रीत,
तू गा रे ! साँझ सकारे !!!

मांझी, तू नदिया का साथी,
तू जाने वो क्या कहती !
कब इठलाती, कब मुस्काती,
कब उसकी आँखें भरती ।
नदिया गाकर किसे बुलाए,
हमें भी बता रे !
तू गा रे ! साँझ सकारे !!!

धारा के कलकल स्वर में,
सुर मिल जाएगा तेरा,
गीत विरह के मत गाना
उस पार पिया का डेरा !
साँझ ढले से पहले मांझी,
पार पहुँचना रे !
तू गा रे ! साँझ सकारे !!!

बीच बीच में भँवर पड़े हैं,
जलधारा है गहरी !
अब पतवार थाम ले कसकर,
ओ प्राणों के प्रहरी !
धारा के संग धारा होकर,
कहाँ तू चला रे !
तू गा रे ! साँझ सकारे !!!

लहरों के मीत,गीतों में प्रीत,
तू गा रे ! साँझ सकारे !!!
तू गा रे ! साँझ सकारे !!!


14 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक सोच लिए बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  2. बहुत सुंदर दिल को छूती रचना, मीना दी।

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  3. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" l में लिंक की गई है। https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/04/115.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  4. जीवन का इतना सुंदर ,सहज और सार्थक गीत अति मधुर..बहुत बहुत अच्छी रचना दी..हमेशा की तरह लाज़वाब👌

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  5. सुंदर सुकोमल भाव रचना अध्यात्म का आवरण ओढे अप्रतिम रचना।

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  6. सच है मांझी नदिया का साथ निरंतर है ... एक के बिना दुसरे की कल्पना भी होना मुश्किल है ... इक दूजे का दुःख दर्द समेटे जीवन की आशा का गीत है आपकी रचना ... कोमल भावों को आत्मसात किये सुन्दर रचना है ...

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  7. वाह! नदी की कलकल धारा संग प्रवाहमान रचना।

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  8. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 3 अप्रैल 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  9. बहुत सुन्दर मीना जी. आपका माझी-गीत पढ़कर सचिन देव बर्मन के गाए हुए माझी-गीतों की याद आ गयी.

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  10. बीच बीच में भँवर पड़े हैं,
    जलधारा है गहरी !
    अब पतवार थाम ले कसकर,
    ओ प्राणों के प्रहरी !
    धारा के संग धारा होकर,
    कहाँ तू चला रे !
    वाह!!!
    हमेशा की तरह बहुत ही लाजवाब रचना...।

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