गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

गीत उगाए हैं !!!

मन की बंजर भूमि पर,
कुछ बाग लगाए हैं !
मैंने दर्द को बोकर,
अपने गीत उगाए हैं !!!

रिश्ते-नातों का विष पीकर,
नीलकंठ से शब्द हुए !
स्वार्थ-लोभ इतना चीखे कि
स्नेह-प्रेम निःशब्द हुए !
आँधी से लड़कर प्राणों के,
दीप जलाए हैं !!!
मैंने दर्द को बोकर अपने....

अपनेपन की कीमत देनी,
होती है अब अपनों को !
नैनों में आने को, रिश्वत
देती हूँ मैं सपनों को !
साँसों पर अभिलाषाओं के
दाँव लगाए हैं !!!
मैंने दर्द को बोकर अपने....

नेह गठरिया बाँधे निकला,
कौन गाँव बंजारा मन !
जाना कहाँ, कहाँ जा पहुँचा,
ठहर गया किसके आँगन !
पागल प्रीत लगा ना बैठे,
लोग पराए हैं !!!
मैंने दर्द को बोकर, 
अपने गीत उगाए हैं !!!

16 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १९ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. बहुत सुंदर सृजन मीना जी गहराई तक उतरती अभिव्यक्ति

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  3. अपनेपन की कीमत देनी,
    होती है अब अपनों को !
    नैनों में आने को, रिश्वत
    देती हूँ मैं सपनों को !
    बहुत खूब .....

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  4. रिश्ते-नातों का विष पीकर,
    नीलकंठ से शब्द हुए !
    स्वार्थ-लोभ इतना चीखे कि
    स्नेह-प्रेम निःशब्द हुए !
    बेहद लाजवाब, अद्भुत अप्रतिम रचना...

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  5. अपनेपन की कीमत देनी,
    होती है अब अपनों को !
    नैनों में आने को, रिश्वत
    देती हूँ मैं सपनों को !
    ...दिल को छूते कटु सत्य के अहसास। उत्कृष्ट अभिव्यक्ति

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  6. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सूरदास जयंती और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  7. बहुत सुन्दर मीना जी !
    आंधी-तूफानों में, हिम्मत रख, उनके संग बह लेना,
    ऐसे गीत उगाने हों तो, दर्द और भी, सह लेना.

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  8. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है। https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/04/118.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  9. स्वार्थ-लोभ इतना चीखे कि
    स्नेह-प्रेम निःशब्द हुए !
    बेहद लाजवाब,

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  10. वाह री कल्पनकल्पना, अत्युत्तम.

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  11. सभी का हृदयपूर्वक आभार । आप सबके सहयोग की मेरे लेखन को सुधारने में बहुत बड़ी भूमिका रही है।

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