बादलों से नेह का निर्झर बहा
बहककर मचल उठी चंचल हवा !
मोतियों से धरा का आँचल भरा
मन मयूर हो प्रफुल्ल, नाचता !
पर्वतों से फूट पड़ा मधुर नाद
पंछियों के सज गए संगीत साज !
वादियों में गीत बहें कल-कल कर
माटी में बीज जगें, अँगड़ाकर !
विचित्र सा, कौन चित्रकार यह ?
बदल रहा, रंग छटाएँ रह - रह !
और लो, बिखर गया वह हरा रंग
कण-कण में बज उठी, जल - तरंग !
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