शनिवार, 7 जुलाई 2018

मेघ - मल्हार


बरस बाद आए बदरा
धरती के द्वार !
मन मगन मदमस्त गाए,
मेघ मल्हार ।।

झुक-झुककर तरुओं ने
किया अभिवादन !
नाजुक लताओं के,
तन-मन में सिहरन !
शीतल पवन ने खोले
खुशियों के द्वार ।
मन मगन मदमस्त गाए,
मेघ मल्हार ।।

छप्पर पर बजती है
बूँदों की झाँझर,
फूलों पर, पत्तों पर
मोती की झालर !
प्रेमगीत गुनगुनाए
बरखा बहार ।
मन मगन मदमस्त गाए,
मेघ मल्हार ।।

कण-कण से फूट रहे,
आनंद अंकुर,
झरनों ने छेड़ दिए
मधुर राग - सुर !
प्यासी पृथ्वी भीगे
अमृत बौछार ।
मन मगन मदमस्त गाए,
मेघ मल्हार ।।

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