बरस बाद आए बदरा
धरती के द्वार !मन मगन मदमस्त गाए,
मेघ मल्हार ।।
झुक-झुककर तरुओं ने
किया अभिवादन !
नाजुक लताओं के,
तन-मन में सिहरन !
शीतल पवन ने खोले
खुशियों के द्वार ।
मन मगन मदमस्त गाए,
मेघ मल्हार ।।
छप्पर पर बजती है
बूँदों की झाँझर,
फूलों पर, पत्तों पर
मोती की झालर !
प्रेमगीत गुनगुनाए
बरखा बहार ।
मन मगन मदमस्त गाए,
मेघ मल्हार ।।
कण-कण से फूट रहे,
आनंद अंकुर,
झरनों ने छेड़ दिए
मधुर राग - सुर !
प्यासी पृथ्वी भीगे
अमृत बौछार ।
मन मगन मदमस्त गाए,
मेघ मल्हार ।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें