रविवार, 22 जुलाई 2018

इतनी इनायत और करो....

बस इतनी इनायत और करो
इक बार ज़ुबां से कह भी दो,
जो लेन-देन का नाता था
अब उसका मोल बता भी दो !
इतनी इनायत और करो.....

इस जीवन के माने क्या थे,
तुमसे मिलने की घड़ियाँ थीं !
गर वो उधार की खुशियाँ थीं
तो उनको अब वापस ले लो !
इतनी इनायत और करो.....

सोने चाँदी का होता तो
इस दिल की कुछ कीमत होती,
पागल दिल के अहसासों को
सच की पहचान करा भी दो !
इतनी इनायत और करो.....

लफ़्जों के खेल में तुम जीते,
लम्हों के खेल में मैं हारी !
कुछ लफ़्ज कैद हैं, कुछ लम्हे,
तुम आज रिहा उनको कर दो !
इतनी इनायत और करो......

बस इतनी इनायत और करो
इक बार ज़ुबां से कह भी दो !!!

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