शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

अपराजिता ही रहूँगी !

भागीरथी की धार सी
कल्पांत तक मैं बहूँगी
अपराजिता ही थी सदा
अपराजिता ही रहूँगी।

वंचना विषपान करना ही
मेरी नियति में है,
पर मेरा विश्वास निशिदिन
प्रेम की प्रगति में है।
संवेदना की बूँद बन मैं,
हर नयन में रहूँगी !
अपराजिता ही थी सदा
अपराजिता ही रहूँगी।

पारंगता ना हो सकी
व्यापार में, व्यवहार में!
हरदम ठगी जाती रही
इस जगत के बाजार में।
फिर भी सदा सद्भाव का,
संदेश देती रहूँगी ।
अपराजिता ही थी सदा
अपराजिता ही रहूँगी।

मैं वेदना उस सीप की
जो गर्भ में मोती को पाले,
मैं रोशनी उस दीप की
जो ज्योत आँधी में सँभाले !
अंबुज कली सी कीच में
खिलती हूँ, खिलती रहूँगी !
अपराजिता ही थी सदा
अपराजिता ही रहूँगी ।।




रविवार, 22 जुलाई 2018

इतनी इनायत और करो....

बस इतनी इनायत और करो
इक बार ज़ुबां से कह भी दो,
जो लेन-देन का नाता था
अब उसका मोल बता भी दो !
इतनी इनायत और करो.....

इस जीवन के माने क्या थे,
तुमसे मिलने की घड़ियाँ थीं !
गर वो उधार की खुशियाँ थीं
तो उनको अब वापस ले लो !
इतनी इनायत और करो.....

सोने चाँदी का होता तो
इस दिल की कुछ कीमत होती,
पागल दिल के अहसासों को
सच की पहचान करा भी दो !
इतनी इनायत और करो.....

लफ़्जों के खेल में तुम जीते,
लम्हों के खेल में मैं हारी !
कुछ लफ़्ज कैद हैं, कुछ लम्हे,
तुम आज रिहा उनको कर दो !
इतनी इनायत और करो......

बस इतनी इनायत और करो
इक बार ज़ुबां से कह भी दो !!!

रविवार, 15 जुलाई 2018

मीरा बावरी !

सुन कान्हा की मधुर मुरलिया,
खो गई मीरा बावरी !
उस छलिया के प्रेम में पड़कर,
हो गई मीरा बावरी !

नटवर नागर के दर्शन की
लगन लगी जब नैनों को,
गोविंद को पाने की धुन में
जागी मीरा रैनों को !
'सूली ऊपर सेज पिया की'
कह गई मीरा बावरी !

विषधर बन गया हार पुष्प का,
विष भी हो गया मधुर सुधा !
हाथ तंबोरा, पाँव में घुँघरू
मीरा हो गई कृष्ण-कथा !
साज-सिंगार त्यागकर जोगन
बन गई मीरा बावरी !

मीरा श्याम, श्याम ही मीरा
अलग-अलग दुनिया जाने !
प्रीत तो अपनी रीत चलाए
जग की रीत कहाँ माने !
भक्ति-सिंधु में, प्रेम-सरित का
संगम है मीरा बावरी !

बुधवार, 11 जुलाई 2018

जल - तरंग


बादलों से नेह का निर्झर बहा
बहककर मचल उठी चंचल हवा !

मोतियों से धरा का आँचल भरा
मन मयूर हो प्रफुल्ल, नाचता !

पर्वतों से फूट पड़ा मधुर नाद
पंछियों के सज गए संगीत साज !

वादियों में गीत बहें कल-कल कर
माटी में बीज जगें, अँगड़ाकर !

विचित्र सा, कौन चित्रकार यह ?
बदल रहा, रंग छटाएँ रह - रह !

और  लो, बिखर गया वह हरा रंग
कण-कण में बज उठी, जल - तरंग !

शनिवार, 7 जुलाई 2018

मेघ - मल्हार


बरस बाद आए बदरा
धरती के द्वार !
मन मगन मदमस्त गाए,
मेघ मल्हार ।।

झुक-झुककर तरुओं ने
किया अभिवादन !
नाजुक लताओं के,
तन-मन में सिहरन !
शीतल पवन ने खोले
खुशियों के द्वार ।
मन मगन मदमस्त गाए,
मेघ मल्हार ।।

छप्पर पर बजती है
बूँदों की झाँझर,
फूलों पर, पत्तों पर
मोती की झालर !
प्रेमगीत गुनगुनाए
बरखा बहार ।
मन मगन मदमस्त गाए,
मेघ मल्हार ।।

कण-कण से फूट रहे,
आनंद अंकुर,
झरनों ने छेड़ दिए
मधुर राग - सुर !
प्यासी पृथ्वी भीगे
अमृत बौछार ।
मन मगन मदमस्त गाए,
मेघ मल्हार ।।

बुधवार, 4 जुलाई 2018

मेरा प्रथम कविता संकलन - 'अब ना रुकूँगी'

मेरी पहली पुस्तक 'अब ना रुकूँगी' बहुत शीघ्र  प्रकाशित होने जा रही है। जिसका मुखपृष्ठ आपके अवलोकन हेतु प्रस्तुत है। यह मेरी 55 कविताओं का संकलन है। मेरे ब्लॉग के सभी पाठकों के प्रोत्साहन एवं सहयोग की सदैव आभारी रहूँगी, जिसके कारण मेरा आत्मविश्वास बढ़ा और मैं पुस्तक प्रकाशन की हिम्मत जुटा पाई। विश्वास है कि आगे भी आप सभी के आशीष एवं शुभेच्छाएँ मेरा मार्ग प्रशस्त करते रहेंगे।