माँग भरी सेंदूर से,
टिकुली धरी लिलार।
अंजन आँजा लाज का,
पूरा हुआ श्रृंगार ।।
आईना अँखियाँ हुईं,
प्रिय-प्रतिबिंब समाय ।
हृदय हुआ बहुरुपिया,
स्वांग हजार रचाय ।।
ओठों पर कुछ और है,
नयनों में कुछ और ।
मन का ठाँव ना पूछिए,
पहुँचा प्रिय की ठौर ।।
पाती प्रिय के नाम की
कुरजां तू ले जाय ।
पथ जोवत अँखियाँ थकीं,
प्राण निकल ना जाय ।।
( कुरजां - एक पक्षी )
टिकुली धरी लिलार।
अंजन आँजा लाज का,
पूरा हुआ श्रृंगार ।।
आईना अँखियाँ हुईं,
प्रिय-प्रतिबिंब समाय ।
हृदय हुआ बहुरुपिया,
स्वांग हजार रचाय ।।
ओठों पर कुछ और है,
नयनों में कुछ और ।
मन का ठाँव ना पूछिए,
पहुँचा प्रिय की ठौर ।।
पाती प्रिय के नाम की
कुरजां तू ले जाय ।
पथ जोवत अँखियाँ थकीं,
प्राण निकल ना जाय ।।
( कुरजां - एक पक्षी )
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