*व्यथा*
जीवन के पच्चीस वसंत
फुलवारी को गुलज़ार रखने में,
जीवन की पच्चीस बरसातें
आँगन को हरा रखने में,
जीवन के पच्चीस ग्रीष्म
चूल्हे की आग को जलाए रखने में,
जीवन की पच्चीस सर्दियाँ
सारे घर के वातावरण को
शीतल रखने में,
ना जाने कब गुजर गए !!!!
ना जाने कब बीत गया
एक सदी का चौथा हिस्सा...
उसके तन की फुलवारी
और मन का खिला हुआ गुलाब
मुरझाता गया, पंखुड़ी-दर-पंखुड़ी !
विश्वास का पौधा सूखता चला गया...
टूटती साँसों को जोड़े रखने की
जद्दोजहद में,
टपकते छ्प्पर से लेकर
आलीशान घर तक की यात्रा में,
झुकी आँखों और घूँघट से लेकर
स्वाभिमान, सम्मान और
अपनी पसंद की पोशाक तक
पहुँचने के सफर में उसने,
खुद को हमेशा ही अकेला पाया !!!!
गालों पर बहते आँसुओं को,
कानों में पिघले शीशे की तरह
पड़ते अपशब्दों को,
घर से निकाल दिए जाने और
मार-पीट की धमकियों को,
सँजो-सँजोकर बंद करती गई वह
अपने हृदय के पैंडोरा बॉक्स में !!!!
अब बस,
इतनी ही गुज़ारिश है उसकी...
इसे खोलने की कभी जिद ना करना,
पछताना पड़ेगा !!!!!
जीवन के पच्चीस वसंत
फुलवारी को गुलज़ार रखने में,
जीवन की पच्चीस बरसातें
आँगन को हरा रखने में,
जीवन के पच्चीस ग्रीष्म
चूल्हे की आग को जलाए रखने में,
जीवन की पच्चीस सर्दियाँ
सारे घर के वातावरण को
शीतल रखने में,
ना जाने कब गुजर गए !!!!
ना जाने कब बीत गया
एक सदी का चौथा हिस्सा...
उसके तन की फुलवारी
और मन का खिला हुआ गुलाब
मुरझाता गया, पंखुड़ी-दर-पंखुड़ी !
विश्वास का पौधा सूखता चला गया...
टूटती साँसों को जोड़े रखने की
जद्दोजहद में,
टपकते छ्प्पर से लेकर
आलीशान घर तक की यात्रा में,
झुकी आँखों और घूँघट से लेकर
स्वाभिमान, सम्मान और
अपनी पसंद की पोशाक तक
पहुँचने के सफर में उसने,
खुद को हमेशा ही अकेला पाया !!!!
गालों पर बहते आँसुओं को,
कानों में पिघले शीशे की तरह
पड़ते अपशब्दों को,
घर से निकाल दिए जाने और
मार-पीट की धमकियों को,
सँजो-सँजोकर बंद करती गई वह
अपने हृदय के पैंडोरा बॉक्स में !!!!
अब बस,
इतनी ही गुज़ारिश है उसकी...
इसे खोलने की कभी जिद ना करना,
पछताना पड़ेगा !!!!!
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