बुधवार, 13 जून 2018

आओ मेघा, बरसो ना !

पर्जन्य अप्सरा के नूपुर
झंकृत होने दो अब सस्वर,
अंबर भावुक - सा हो जाए
धाराएँ बरसें झर झर झर ।

इस मन की बंजर भूमि को
थोड़ा - सा उर्वर कर दो ना !
पार क्षितिज के कहाँ रुके हो,
आओ मेघा, बरसो ना !!!

दामिनी का हो अद्भुत नर्तन
शीतल बयार से सिहरे मन !
रिमझिम फुहार से भीगे तन,
भीगे हर तृण, भीगे कण-कण ।

मोती बिखरें उपवन कानन,
तरुओं को अलंकृत कर दो ना !
पार क्षितिज के कहाँ रुके हो,
आओ मेघा, बरसो ना !!!

इंद्रसैन्य - से दल के दल
गरजो,उमड़ो सुंदर श्यामल,
तुम रूप बदलते हो प्रतिपल,
रूई के फाहों से कोमल ।

सोए सपनों को झकझोरो
माटी को सोना कर दो ना !
पार क्षितिज के कहाँ रुके हो,
आओ मेघा, बरसो ना !!!

बिसरे गीतों के सारे स्वर
नदियों की घाटी में भरकर,
हर दिशा-दिशा से गूँजेंगे,
फिर राग प्रेम के मंद-मदिर ।

पर्वत शिखरों का आलिंगन
छोड़ो, धरती पर उतरो ना !
पार क्षितिज के कहाँ रुके हो,
आओ मेघा, बरसो ना !!!


10 टिप्‍पणियां:

  1. पर्वत शिखरों का आलिंगन
    छोड़ो, धरती पर उतरो ना !
    पार क्षितिज के कहाँ रुके हो,
    आओ मेघा, बरसो ना !!!
    बहुत सुंदर।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  3. पार क्षितिज के कहाँ रुके हो
    आओ मेघा बरसो ना
    गरमी से तपती धरती का कण कण यही गुहार रहा आ़ओ मेघा बरसों ना....
    बहुत हही लाजवाब रचना...
    वाह!!!

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  4. रुई के कोमल फाहों से शब्दों से रिमझिम सी बरसती मनभावन कविता।

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  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 18 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. जी दी आपकी रचना तो बस अद्भुत है।
    कितना सुंदर शब्द संयोजन है और भाव तो मानो बारिश की बूँदें बनकर टपक रही।

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  7. वाह ! झरने से बहता अद्भुत सृजन आदरणीया दीदी.
    सादर

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  8. आपकी यह साहित्यिक रचना मुझसे चूक गई. पहली बार देखा. बहुत उम्दा साहित्य।

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