पर्जन्य अप्सरा के नूपुर
झंकृत होने दो अब सस्वर,
अंबर भावुक - सा हो जाए
धाराएँ बरसें झर झर झर ।
इस मन की बंजर भूमि को
थोड़ा - सा उर्वर कर दो ना !
पार क्षितिज के कहाँ रुके हो,
आओ मेघा, बरसो ना !!!
दामिनी का हो अद्भुत नर्तन
शीतल बयार से सिहरे मन !
रिमझिम फुहार से भीगे तन,
भीगे हर तृण, भीगे कण-कण ।
मोती बिखरें उपवन कानन,
तरुओं को अलंकृत कर दो ना !
पार क्षितिज के कहाँ रुके हो,
आओ मेघा, बरसो ना !!!
इंद्रसैन्य - से दल के दल
गरजो,उमड़ो सुंदर श्यामल,
तुम रूप बदलते हो प्रतिपल,
रूई के फाहों से कोमल ।
सोए सपनों को झकझोरो
माटी को सोना कर दो ना !
पार क्षितिज के कहाँ रुके हो,
आओ मेघा, बरसो ना !!!
बिसरे गीतों के सारे स्वर
नदियों की घाटी में भरकर,
हर दिशा-दिशा से गूँजेंगे,
फिर राग प्रेम के मंद-मदिर ।
पर्वत शिखरों का आलिंगन
छोड़ो, धरती पर उतरो ना !
पार क्षितिज के कहाँ रुके हो,
आओ मेघा, बरसो ना !!!
झंकृत होने दो अब सस्वर,
अंबर भावुक - सा हो जाए
धाराएँ बरसें झर झर झर ।
इस मन की बंजर भूमि को
थोड़ा - सा उर्वर कर दो ना !
पार क्षितिज के कहाँ रुके हो,
आओ मेघा, बरसो ना !!!
दामिनी का हो अद्भुत नर्तन
शीतल बयार से सिहरे मन !
रिमझिम फुहार से भीगे तन,
भीगे हर तृण, भीगे कण-कण ।
मोती बिखरें उपवन कानन,
तरुओं को अलंकृत कर दो ना !
पार क्षितिज के कहाँ रुके हो,
आओ मेघा, बरसो ना !!!
इंद्रसैन्य - से दल के दल
गरजो,उमड़ो सुंदर श्यामल,
तुम रूप बदलते हो प्रतिपल,
रूई के फाहों से कोमल ।
सोए सपनों को झकझोरो
माटी को सोना कर दो ना !
पार क्षितिज के कहाँ रुके हो,
आओ मेघा, बरसो ना !!!
बिसरे गीतों के सारे स्वर
नदियों की घाटी में भरकर,
हर दिशा-दिशा से गूँजेंगे,
फिर राग प्रेम के मंद-मदिर ।
पर्वत शिखरों का आलिंगन
छोड़ो, धरती पर उतरो ना !
पार क्षितिज के कहाँ रुके हो,
आओ मेघा, बरसो ना !!!
पर्वत शिखरों का आलिंगन
जवाब देंहटाएंछोड़ो, धरती पर उतरो ना !
पार क्षितिज के कहाँ रुके हो,
आओ मेघा, बरसो ना !!!
बहुत सुंदर।
बेहतरीन रचना मीना जी
जवाब देंहटाएंवाह 👏 👏 👏 अप्रतिम
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
पार क्षितिज के कहाँ रुके हो
जवाब देंहटाएंआओ मेघा बरसो ना
गरमी से तपती धरती का कण कण यही गुहार रहा आ़ओ मेघा बरसों ना....
बहुत हही लाजवाब रचना...
वाह!!!
रुई के कोमल फाहों से शब्दों से रिमझिम सी बरसती मनभावन कविता।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 18 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंजी दी आपकी रचना तो बस अद्भुत है।
जवाब देंहटाएंकितना सुंदर शब्द संयोजन है और भाव तो मानो बारिश की बूँदें बनकर टपक रही।
वाह ! झरने से बहता अद्भुत सृजन आदरणीया दीदी.
जवाब देंहटाएंसादर
आपकी यह साहित्यिक रचना मुझसे चूक गई. पहली बार देखा. बहुत उम्दा साहित्य।
जवाब देंहटाएं