अकेलेपन की
कोई ऐसी खिड़की
दीवारों को टटोलती,
खोजती हूँ -
कोई ऐसी खिड़की
जिसमें से आती हो,
चिड़ियों की चूँ-चूँ
फूलों की खुशबू,
बारिश की बूँदों की
मीठी सी रिमझिम,
पत्तों से पानी
टपकने की टिपटिप,
पत्तों से पानी
टपकने की टिपटिप,
माटी की खुशबू
नमी ओस की !!!
फिर खोजती हूँ -
वो छोटा झरोखा,
जिसमें से झाँके
अंबर का मुखड़ा,
सूरज की आँखें
बादल का चेहरा,
चंदा की साँसें
तारों की बातें,
हवा की हँसी !!!!
फिर खोजती हूँ -
कोई राह ऐसी,
निकलकर जहाँ से
पहुँच जाऊँ तुम तक,
सिमटकर तुम्हारे
पहलू में रो लूँ,
करूँ सारे शिकवे
कहूँ सारी बातें,
जो अब तक कभी भी
कही ही नहीं !!!!
अकेलेपन की
दीवारों को टटोलती,
तुम्हे खोजती हूँ ....
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