काँटों से हरपल चुभन मिली,
मिलनी ही थी !पर फूल चुभें जब काँटे बन,
आँचल को तार-तार कर दें !
जब कलियों से भी जख्म मिलें,
पंखुड़ियों से तन छिल जाए !
तब मन तो, दुखता है ना ?
सूरज से आग बरसती है,
बरसेगी ही !
पर चंदा की शीतल किरणें,
जब बन अंगारे, झुलसा दें !
अंजुरि में भरी चाँदनी से,
हाथों में छाले पड़ जाएँ !
तब मन तो, दुखता है ना ?
अँधियारे मग में पग भटके,
भटकेगा ही !
पर भरी दोपहरी राह भूल,
जब पागल सा भटके पांथी !
जब दीपक तले अंधेरा पा,
कुछ कर ना सके जलती बाती !
तब मन तो, दुखता है ना ?
जो प्रीत का धागा कच्चा हो,
टूटेगा ही !
पर उस धागे का एक छोर
जब बँधा हृदय से रह जाए !
और दूजा छोर खोजने में,
हर साँस उलझ कर रह जाए !
तब मन तो, दुखता है ना ?
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