शनिवार, 7 अप्रैल 2018

उड़ान

आकाश से ऊँची
जरा उड़ान भर !
पर्वत से उच्च,अपना
स्वाभिमान कर !

छूकर दिखा दे आज
हिमालय की बुलंदी,
बनकर भगीरथ
गंग का आह्वान कर !

पंखों से नाप ले गगन
तेरा चमन, तेरे सुमन,
तुझको रहे पुकार
अब प्रयाण कर !

दुष्कर है, किंतु खींच
जगन्नाथ रथ,
जीवन समर है
युद्ध का ऐलान कर !

दुश्मन की नजर में है
ये सोने की चिरैया,
दुश्मन के इरादों को
तू नाकाम कर !


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें