आकाश से ऊँची
जरा उड़ान भर !
पर्वत से उच्च,अपना
स्वाभिमान कर !
छूकर दिखा दे आज
हिमालय की बुलंदी,
बनकर भगीरथ
गंग का आह्वान कर !
पंखों से नाप ले गगन
तेरा चमन, तेरे सुमन,
तुझको रहे पुकार
अब प्रयाण कर !
दुष्कर है, किंतु खींच
जगन्नाथ रथ,
जीवन समर है
युद्ध का ऐलान कर !
दुश्मन की नजर में है
ये सोने की चिरैया,
दुश्मन के इरादों को
तू नाकाम कर !
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