जब मैं तुमसे मिलूँगी,
तुमसे कुछ दूर बैठी
टकटकी लगाकर
निहारूँगी तुम्हें.....
पहचानने की कोशिश करूँगी,
महसूस तो हर पल
किया है तुम्हें,
अब जानना चाहूँगी !
जब मैं तुमसे मिलूँगी,
मेरा मन तो मचलेगा
कि एक बार तुम्हें छूकर देखूँ
तुम वाकई हो भी या नहीं
लेकिन नहीं.... नहीं छुऊँगी,
कहीं तुम्हें छूने से मेरा
भ्रम ना टूट जाए !
जब मैं तुमसे मिलूँगी,
मेरी रूह से लिपट जाना
कोहरे की तरह
जानती हूँ, कोहरा कभी
हाथ में नहीं आता
पर जब छाता है तो
बिल्कुल सामने के दृश्य भी
नजर नहीं आते !
जब मैं तुमसे मिलूँगी
तब पूछूँगी तुमसे कि
कहाँ थे अब तक, क्यूँ थे,
कैसे रहे, अब कैसे आए.....
वगैरा वगैरा.....
देखो, तुम मेरे सवालों से
बेज़ार मत होना
और ना मेरे आँसुओं से,
जो माटी पर गिर रहे होंगे टप टप,
वही माटी तुम्हारे कदम भी
चूमेगी कभी....
जब मैं तुमसे मिलूँगी,
तब तुम तो मुझे पहचान लोगे ना ?
तुमसे कुछ दूर बैठी
टकटकी लगाकर
निहारूँगी तुम्हें.....
पहचानने की कोशिश करूँगी,
महसूस तो हर पल
किया है तुम्हें,
अब जानना चाहूँगी !
जब मैं तुमसे मिलूँगी,
मेरा मन तो मचलेगा
कि एक बार तुम्हें छूकर देखूँ
तुम वाकई हो भी या नहीं
लेकिन नहीं.... नहीं छुऊँगी,
कहीं तुम्हें छूने से मेरा
भ्रम ना टूट जाए !
जब मैं तुमसे मिलूँगी,
मेरी रूह से लिपट जाना
कोहरे की तरह
जानती हूँ, कोहरा कभी
हाथ में नहीं आता
पर जब छाता है तो
बिल्कुल सामने के दृश्य भी
नजर नहीं आते !
जब मैं तुमसे मिलूँगी
तब पूछूँगी तुमसे कि
कहाँ थे अब तक, क्यूँ थे,
कैसे रहे, अब कैसे आए.....
वगैरा वगैरा.....
देखो, तुम मेरे सवालों से
बेज़ार मत होना
और ना मेरे आँसुओं से,
जो माटी पर गिर रहे होंगे टप टप,
वही माटी तुम्हारे कदम भी
चूमेगी कभी....
जब मैं तुमसे मिलूँगी,
तब तुम तो मुझे पहचान लोगे ना ?