रात की नीली नदी में
चाँद कमल-सा खिला !!!झूमकर चली पवन,
विहँस पड़ी दिशा-दिशा,
चढ़ अटारी क्षितिज की,
नाच उठी ज्योत्सना !
रात की नीली नदी में
चाँद कमल-सा खिला !!!
चंचला बिजुरी दमककर
छिप गई घन के हृदय में
झाँकते नक्षत्रगण कुछ,
जुगनुओं से टिमटिमा !
रात की नीली नदी में
चाँद कमल-सा खिला !!!
आज आधी रात में
पपीहरा बेचैन क्यों ?
तीर किसकी पीर का,
उर में इसके उतर गया !
रात की नीली नदी में
चाँद कमल-सा खिला !!!
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