मंगलवार, 17 अक्तूबर 2017

एक दीप !

एक दीप, मन के मंदिर में,
कटुता द्वेष मिटाने को !
एक दीप, घर के मंदिर में
भक्ति सुधारस पाने को !

एक दीप, तुलसी चौरे पर 
वृंदा सी शुचिता पाने को !
एक दीप, अंधियारे पथ पर
भटके राही घर लाने को !


दीपक एक, स्नेह का जागे
वंचित आत्माओं की खातिर !
जागे दीपक, सजग सत्य का
टूटी आस्थाओं की खातिर !

एक दीप, घर की देहरी पर,
खुशियों का स्वागत करने को !
एक दीप, मन की देहरी पर,
अंतर्बाह्य तिमिर हरने को !

दीप प्रेम का रहे प्रज्ज्वलित,
जाने कब प्रियतम आ जाएँ !
दो नैनों के दीप निरंतर
करें प्रतीक्षा, जलते जाएँ !
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7 टिप्‍पणियां:

  1. दीप प्रेम का रहे प्रज्ज्वलित,
    जाने कब प्रियतम आ जाएँ !
    दो नैनों के दीप निरंतर
    करें प्रतीक्षा, जलते जाएँ !
    अद्भुत और अद्वितीय सृजन मीना जी ! बहुत सुकून मिला आपकी रचना पढ़ कर .. संग्रहणीय रचना ।

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    1. आपके अनमोल स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए हृदय से आभार मीनाजी।

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  2. दीपक एक, स्नेह का जागे
    वंचित आत्माओं की खातिर !
    जागे दीपक, सजग सत्य का
    टूटी आस्थाओं की खातिर
    बहुत ही प्यारी रचना प्रिय मीना जो दीपक के रूप में उजालों को आमन्त्रण देती है | सच में दीपक का विरोध तो बस अन्धकार ही कर सकता है | आपका ये विचार मन को भा गया सखी | हार्दिक शुभकामनाएं |

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    उत्तर
    1. बहुत सारा स्नेह और आभार रेणु बहन। आपके शब्द हृदय को खुशी से भर देते हैं।

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  3. एक दीप, घर की देहरी पर,
    खुशियों का स्वागत करने को !
    एक दीप, मन की देहरी पर,
    अंतर्बाह्य तिमिर हरने को !
    बहुत ही सुन्दर रचना
    मन की देहरी पर तो अखण्ड दिया जले जो अन्तर्बाह्य तिमिर हर सके...
    बहुत ही लाजवाब सृजन ।

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  4. अविस्मरणीय सृजन प्रिय मीना! दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ❤️❤️

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  5. अविस्मरणीय सृजन प्रिय मीना! दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ❤️❤️

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