रविवार, 22 अक्तूबर 2017

खामोशियाँ गुल खिलाती हैं !

रात के पुर-असर सन्नाटे में
जब चुप हो जाती है हवा
फ़िज़ा भी बेखुदी के आलम में
हो जाती है खामोश जब !
ठीक उसी लम्हे,
चटकती हैं अनगिनत कलियाँ
खामोशियाँ गुल खिलाती हैं !!!

दर्द की बेपनाही में अक्सर

दिल चीखकर रोता है बेआवाज़
पथराई नजरों की जुबां भी
हो जाती हैं खामोश जब !
ठीक उसी लम्हे,
फफककर फूटता है आबशार
खामोशियाँ आँसू बहाती हैं !!!

किसी की खामोशी का सबब

जानकर, अनजान बनता है कोई
इश्किया गज़लों के तमाम अशआर
हो जाते हैं खामोश जब !
ठीक उसी लम्हे,
बिखरता है कोई मासूम दिल
खामोशियाँ दिल तोड़ जाती हैं !!!
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*( अशआर = शे'र का बहुवचन, बेखुदी = बेसुधी,

फ़िज़ा = प्रकृति, आबशार = झरना, गुल = पुष्प, 
सबब = कारण, पुर-असर = असरदार )*


1 टिप्पणी:


  1. किसी की खामोशी का सबब
    जानकर, अनजान बनता है कोई
    इश्किया गज़लों के तमाम अशआर
    हो जाते हैं खामोश जब !
    ठीक उसी लम्हे,
    बिखरता है कोई मासूम दिल
    खामोशियाँ दिल तोड़ जाती हैं !!
    वाह, प्रिय मीना |

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