जिंदगी हर पल कुछ नया सिखा गई,
ये दर्द में भी हँस कर जीना सिखा गई ।
जब चुप रहे, तो जिंदगी बोली कि कुछ कहो
जब बोलने लगे तो, चुप रहना सिखा गई ।
यूँ मंजिलों की राह भी आसान नहीं थी,
बहके कदम तो फिर से सँभलना सिखा गई ।
काँटे भी कम नहीं थे गुलाबों की राह में,
खुशबू की तरह हमको बिखरना सिखा गई ।
अच्छाइयों की आज भी कीमत है जहाँ में,
दामन को दुआओं से ये भरना सिखा गई ।।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
६ जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहके कदमों को फिर से सम्हलना लिखा गई। वाह बेहतरीन।
जवाब देंहटाएं"जब चुप रहे, तो जिंदगी बोली कि कुछ कहो
जवाब देंहटाएंजब बोलने लगे तो, चुप रहना सिखा गई ।"
वाह! बहुत खूब...।
सत्य के करीब।
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
आप सभी ने ब्लॉग पर आकर मेरा उत्साह बढ़ाया, इसके लिए आप सबका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ।
जवाब देंहटाएंजन के दिलों में समता जगा दे।
जवाब देंहटाएंभेद भुलाकर विषमता भगा दे।
कटुताओं को जड़ से मिटा दे।
हे जगदीश्वर एेसी दुआ दे।
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब सृजन