रविवार, 26 मार्च 2017

प्रेम बड़ा छ्लता है

प्रेम बड़ा छ्लता है,
साथी, प्रेम बड़ा छलता है ।
जलती तो बाती है,
साथी, दीप कहाँ जलता है ?
प्रेम बड़ा छलता है ।

कहीं किसी से जीवनभर में
प्रीत नहीं जुड़ पाती है,
कहीं अजानी मंजिल को
राहें खुद ही मुड़ जाती हैं !
पर दुर्लभ उपहार प्रेम का,
कहाँ सभी को मिलता है ?

प्रेम बड़ा छलता है,
साथी, प्रेम बड़ा छ्लता है ।

मन से मन के तार जुड़ें तो,
हर दूरी मिट जाती है
हिमगिरी से निकली गंगा,
सागर तक दौड़ी आती है ।
बोलो,कब खुद सागर आकर
किसी नदी से मिलता है?

प्रेम बड़ा छलता है,
साथी, प्रेम बड़ा छलता है ।

इसी प्रेम ने राधाजी को
कृष्ण विरह में था तड़पाया,
इसी प्रेम ने ही मीरा को,
जोगन बन, वन वन भटकाया।
आभासी ही सदा क्षितिज पर
गगन धरा से मिलता है। 

प्रेम बड़ा छ्लता है,
साथी, प्रेम बड़ा छ्लता है।।

7 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (20-03-2020) को महामारी से महायुद्ध ( चर्चाअंक - 3646 ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    आँचल पाण्डेय

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  2. वाकई प्रेम छलावा है.
    मिर्जा युद्ध में मारा गया- प्रेमी कहलाया, जबकि शाहीबा मिर्जा को मृत देखकर उसके प्रेम में प्राण त्याग दिए- दगाबाज और बेवफ़ा कहलाई.
    बहुत ही शानदार रचना
    लय जबरदस्त है.
    नई रचना- सर्वोपरि?

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  3. सुंदर कविता। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  4. आभासी ही सदा क्षितिज पर
    गगन धरा से मिलता है।
    प्रेम बड़ा छ्लता है,
    साथी, प्रेम बड़ा छ्लता है

    अदभुत सृजन मीना जी ,निशब्द हूँ ,बस सादर नम आपकी लेखनी को

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  5. आपकी लिखी हर रचना मन स्पर्श कर जाती है दी।
    हम निःशब्द हो जाते हैं।
    हमेशा की तरह बहुत सुंदर लेखन।
    सादर।

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  6. जलती तो बाती है,
    साथी, दीप कहाँ जलता है ?
    प्रेम बड़ा छलता है ।
    क्या बात है प्रिय मीना | ये पंक्तियाँ भी आँखें नम कर गयीं !

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