माफ करना वीर मेरे !
माफ करना वीर मेरे !
मैं तुम्हें ना दे सकी...
श्रद्धांजलि !
हर तरफ था जिक्र तेरे शौर्य का !
हर जुबाँ पर थी,
तेरी कुर्बानियों की दास्ताँ !
वीर मेरे ! रो रहे थे नैन कितने...
दिल भी सबके रो रहे थे !
देखती पढती रही मैं
वीरता की हर कहानी,
जिसमें तुम थे !
नमन - वंदन क्या मैं कहती,
शब्द कम थे !
वीर मेरे ! कोई उपमा ना मिली !
माफ करना वीर मेरे !
मैं तुम्हे ना दे सकी...
श्रद्धांजलि !
है मेरा भी लाल कोई
जैसे तुम थे माँ के अपनी...
बस उसी के अक्स को
तेरी जगह रखा था मैंने !
हाँ, उसी पल से...तभी से...
रुह मेरी सुन्न है और
काँपते हैं हाथ मेरे !
शब्द मेरे रो पड़े और
रुक गई मेरी कलम भी !
वीर मेरे ! अश्रुधारा बह चली...
माफ करना वीर मेरे !
मैं तुम्हें ना दे सकी...
श्रद्धांजलि ! श्रद्धांजलि !
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दर्द भरी इक दास्ताँ.
जवाब देंहटाएंदेश के लिए जान देने वाले वीरों को श्रद्धांजलि देकर अपने आप को कर्तव्य से मुक्त न समझें यही भावना....बहुत आभार ।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 17 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को हमकदम में शामिल करने हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया दीदी।
हटाएंकाँपते हैं हाथ मेरे !
जवाब देंहटाएंशब्द मेरे रो पड़े और
रुक गई मेरी कलम भी !
वीर मेरे ! अश्रुधारा बह चली..
बेहद मार्मिक ,आज भी उस दिन को याद कर उन वीरों को याद कर रूह तेदेपा उठती ,उस माँ की वेदना
महसूस होने लगती हैं जिसने देश पर अपने लाल न्योछावर किए ,कोटि कोटि नमन उन वीर सपूतों को। मीना जी इस अनमोल सृजन लिए आपको सादर नमन
बहुत बहुत आभार और स्नेह प्रिय कामिनी बहन।
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