गुरुवार, 27 अक्तूबर 2016

सिया के राम


सिया  के राम


वनगमन सिया का सबने देखा,
अश्रू राम के किसने देखे ?
बोले राम, प्रिया तुम बिन
जीवन के सब दिन गए अलेखे ।

भिन्न शरीर हमारे लेकिन
इक दूजे से एकरूप हम
सिया राम से, राम सिया से
अलग कहाँ जी पाते इक क्षण ?

मुझ पर राज्यपिपासु होने का
लगा हुआ अब तक आरोप,
वन भेजा तुमको मैंने
क्या मुझे नहीं था इसका क्षोभ ?

कलियुग में भी कई राम हैं
और कई सीताएँ हैं,
कर्तव्यों से बँधे हुए सब
सबकी अपनी गाथाएँ हैं !

इस धरती के सारे मानव
चाहे मुझको दे लें दोष ,
क्षमा माँगता हूँ मैं तुमसे
तुम मुझ पर ना करना रोष ।
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2 टिप्‍पणियां:

  1. राम का सीता से अपनी मानसिकता का सुंदर बखान..

    वाह!!! बहुत उत्कृष्ट.

    पढ़ने को पात्र बनाया.
    धन्यवाद.
    अयंगर.

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    उत्तर
    1. आभार सर । आपकी प्रतिक्रियाओं का आगे भी इंतजार रहेगा ।

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