कहता होगा चाँद
जब बात मेरी तेरे कानों में कहता होगा चाँद
इस दुनिया के कितने ताने, सहता होगा चाँद...
कभी साथ में हमने-तुमने उसको जी भर देखा था
आज साथ में हमको, देखा करता होगा चाँद...
यही सोचकर बड़ी देर झोली फैलाए खड़ी रही
पीले पत्ते सा अब, नीचे गिरता होगा चाँद...
अँबवा की डाली के पीछे, बादल के उस टुकड़े में
छुप्पा-छुप्पी क्यों बच्चों सी, करता होगा चाँद...
मेरे जैसा कोई पागल, बंद ना कर ले मुट्ठी में
यही सोचकर दूर-दूर, यूँ रहता होगा चाँद...
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कविता अच्छी लगी.दूसरा व अंतिम बंद बहुत प्यारा लगा. आभार.
जवाब देंहटाएंकविता अच्छी लगी.दूसरा व अंतिम बंद बहुत प्यारा लगा. आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया श्रीमानजी
हटाएंबहुत-बहुत सुंदर कविता मीना
हटाएंgood thought
जवाब देंहटाएंpl visit my blog as well
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Thanks and sure I'll
हटाएंnice
जवाब देंहटाएंThank u sir
हटाएंजब बात मेरी तेरे कानों में कहता होगा चाँद
जवाब देंहटाएंइस दुनिया के कितने ताने, सहता होगा चाँद...
कभी साथ में हमने-तुमने उसको जी भर देखा था
आज साथ में हमको, देखा करता होगा चाँद...////
चाँद के बहाने शाब्दार रचना प्रिय मीना ! बहुत बहुत बधाई |
आँखों में भर सूरत उजली
जवाब देंहटाएंमैं स्वप्न तुम्हारे बुनती हूँ
तुम नील गगन में रहते हो
मैं धरा से तुमको गुनती हूँ।
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चाँद कल्पनाओं का वो तिलिस्म है जिसकी शीतलता मन के सारे दुःख पर मरहम लगा जाती है।
बेहद खूबसूरत रचना दी।
प्रणाम दी
सादर।
यही सोचकर बड़ी देर झोली फैलाए खड़ी रही
जवाब देंहटाएंपीले पत्ते सा अब, नीचे गिरता होगा चाँद...
वाह!!!
अद्भुत... अप्रतिम.... लाजवाब सृजन।