रविवार, 16 अक्तूबर 2016

कहता होगा चाँद


कहता होगा चाँद

जब बात मेरी तेरे कानों में कहता होगा चाँद
इस दुनिया के कितने ताने, सहता होगा चाँद...

कभी साथ में हमने-तुमने उसको जी भर देखा था
आज साथ में हमको, देखा करता होगा चाँद...

यही सोचकर बड़ी देर झोली फैलाए खड़ी रही
पीले पत्ते सा अब, नीचे गिरता होगा चाँद...

अँबवा की डाली के पीछे, बादल के उस टुकड़े में
छुप्पा-छुप्पी क्यों बच्चों सी, करता होगा चाँद...

मेरे जैसा कोई पागल, बंद ना कर ले मुट्ठी में
यही सोचकर दूर-दूर, यूँ रहता होगा चाँद...
=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=

11 टिप्‍पणियां:

  1. कविता अच्छी लगी.दूसरा व अंतिम बंद बहुत प्यारा लगा. आभार.

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  2. कविता अच्छी लगी.दूसरा व अंतिम बंद बहुत प्यारा लगा. आभार.

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  3. जब बात मेरी तेरे कानों में कहता होगा चाँद
    इस दुनिया के कितने ताने, सहता होगा चाँद...
    कभी साथ में हमने-तुमने उसको जी भर देखा था
    आज साथ में हमको, देखा करता होगा चाँद...////
    चाँद के बहाने शाब्दार रचना प्रिय मीना ! बहुत बहुत बधाई |

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  4. आँखों में भर सूरत उजली
    मैं स्वप्न तुम्हारे बुनती हूँ
    तुम नील गगन में रहते हो
    मैं धरा से तुमको गुनती हूँ।
    -----
    चाँद कल्पनाओं का वो तिलिस्म है जिसकी शीतलता मन के सारे दुःख पर मरहम लगा जाती है।

    बेहद खूबसूरत रचना दी।
    प्रणाम दी
    सादर।

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  5. यही सोचकर बड़ी देर झोली फैलाए खड़ी रही
    पीले पत्ते सा अब, नीचे गिरता होगा चाँद...
    वाह!!!
    अद्भुत... अप्रतिम.... लाजवाब सृजन।

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