गुरुवार, 29 सितंबर 2016

एक प्रश्न..


 एक प्रश्न..


मई का महीना बहुत कम लोगों को पसंद आता है अपनी तेज जलाने वाली धूप और गर्मी के कारण लेकिन दो प्रजातियाँ ऐसी भी हैं जो इस महीने का इंतजार साल भर करती हैं --

जी हाँ ! सही समझा आपने । 
शिक्षक और विद्यार्थी .... और
इनमें से एक प्रजाति में मेरा समावेश होता है ।

मई की अलसाई दोपहर में चिड़ियों के प्याले में पानी भरने मैं अपनी बालकनी में पहुँची तो सहसा नीचे नज़र चली गई । एक सात-आठ साल की लड़की नंगे पैर उस जलती सड़क पर जा रही थी । इक्का दुक्का लोग और भी थे। लेकिन सब मानो जल्दी में थे । मैंने आवाज देकर लड़की को रोका,

"सुनो, इधर देखो, ऊपर ।" उसने सुना और ऊपर देखा । मैंने कहा , "कहाँ रहती हो?"
उत्तर मिला,"सामने।" 

मैं समझ गई। सड़क के उस पार मैदान में कुछ झुग्गियाँ थी सड़क बनाने वाले मजदूरों की। मैंने अपने पैरों में पहनी हुई चप्पलें नीचे फेंक दी । उसने तुरंत चप्पलें पैरों में डाल ली । मुझे संतोष हुआ ।

अगले दिन दोपहर एक बजे के करीब मैं एक रिश्तेदार के घर से लौट रही थी । वही लड़की फिर सामने। बगल में पानी का कलसा दबाए, नंगे पैर। "अरे ! कल मैंने जो चप्पलें दी थीं वो क्यों नहीं पहनी? पैर जलते नहीं क्या तुम्हारे ? कहाँ गई चप्पलें?" मैंने एक साथ कई प्रश्न दाग दिए ।

"चुड़ैल के पास ।" जवाब मिला.
उन भोली आँखों में डर का साया नजर आया । 

"चुड़ैल के पास ? 
तुम्हे कैसे मालूम ?" 
मैं कुछ समझ नहीं पाई । 

"हाँ, आज सुबह माँ बापू से कह रही थी 
'दे आया उस चुड़ैल को नई चप्पलें' । 

दो दिन पहले माँ को साड़ी दी थी मालकिन ने, वो भी चुड़ैल को दे दी थी बापू ने ।"

"अच्छा, तुम कल सुबह यहीं मिलना, मैं तुम्हारे नाप की चप्पलें ला दूँगी।" वह सिर हिलाकर आगे बढ़ गई और एक सवाल छोड़ गई मेरे सामने ....

कब तक औरत ही औरत की दुश्मन बनती रहेगी ?
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11 टिप्‍पणियां:

  1. A very very Heart touching post Ma'am... "यहाँ औरत औरत की दुश्मन नहीं है, उस आदमी ने उन्हें बना दिया है, लेकिन बात फिर भी वही है... इन सब की वजह की वजह एक औरत ही है"

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  2. A very very Heart touching post Ma'am... "यहाँ औरत औरत की दुश्मन नहीं है, उस आदमी ने उन्हें बना दिया है, लेकिन बात फिर भी वही है... इन सब की वजह की वजह एक औरत ही है"

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  3. Universal problem , solution is simple we should be empathetic.....

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  4. सुंदर ब्लॉग. ये प्रश्न था , है और रहेगा.

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    1. हर्षवर्धन जी, बहुत बहुत धन्यवाद सार्थक टिप्पणी करने और प्रोत्साहन के लिए ।

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    2. हर्षवर्धन जी, बहुत बहुत धन्यवाद सार्थक टिप्पणी करने और प्रोत्साहन के लिए ।

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  5. यह सिलसिला जल्दी थमने वाला नहीं है. मानव की पहले आवश्कताएँ, फिर जरूरतें उसके बाद शौक जब पूरे हो जाएँगे तब ही जाकर आपसी ईर्ष्या घटेगी और रुकेगी. अन्यथा यह मानसिकता छूट नहीं सकती. बस हम प्रयास करते रहें कभी तो स्वर्णिम सुबह आएगी.

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  6. जब तक मानव की आवश्यकताएँ जरूरतें और शौक पूरे नहीं हो जाते , यह आपसी ईर्ष्या ऐसे ही रहेगी. मानसिकता बदलने के लिए मनःशाँति जरूरी है. ऐसा समय आएगा इसकी बस आस ही की जा सकती है... स्वर्णिम सुबह कभी तो आएगी.

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