फिर सुबह के गीत लिख दो साथियो !
नफरतों में प्रीत लिख दो साथियो !
तुम लहू के रंग को पहचान लो,
तुम हवाओं की दिशा को जान लो,
कर ना पाए अब तुम्हें गुमराह कोई,
ना बदल पाए तुम्हारी चाह कोई ,
इक अनोखी रीत लिख दो साथियो !
नफरतों में प्रीत लिख दो साथियो !
जात भी है, धर्म भी है, पंथ भी !
हर तरह के देश में हैं ग्रंथ भी,
क्यूँ मगर इनके लिए लड़ते हैं हम,
बात पर अपनी ही क्यूँ अड़ते हैं हम ?
तुम लिखो एक प्रेम की पुस्तक नई,
इंसान की तुम जीत लिख दो साथियो !
नफरतों में प्रीत लिख दो साथियो !
फिर सुबह के गीत लिख दो साथियो !
नफरतों में प्रीत लिख दो साथियो !
सुंदर सृजन ! वर्तमान समय में प्रीत के गीतों की बहुत ज़रूरत है मीना जी
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" मंगलवार 02 अप्रैल 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह! सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर गीत ... आशा और उम्मीद लिए ...
जवाब देंहटाएंजात भी है, धर्म भी है, पंथ भी !
जवाब देंहटाएंहर तरह के देश में हैं ग्रंथ भी,
क्यूँ मगर इनके लिए लड़ते हैं हम,
बात पर अपनी ही क्यूँ अड़ते हैं हम ?
काश आपकी बात कोई समझ पाता... कोई नफरतों में प्रीत लिख पाता...
लाजवाब गीत
वाह!!!
बहुत सुंदर और प्रेरक सृजन प्रिय मीना!
जवाब देंहटाएंकाश! तुच्छ राजनीति से प्रेरित अकारण भीतर नफरत का जहर घोलते लोग ये बात समझ पाते तो दुनिया कितनी सुंदर होती!!