सोमवार, 1 अप्रैल 2024

फिर सुबह के गीत लिख दो साथियो !

फिर सुबह के गीत लिख दो साथियो !

नफरतों में प्रीत लिख दो साथियो !


तुम लहू के रंग को पहचान लो,

तुम हवाओं की दिशा को जान लो,

कर ना पाए अब तुम्हें गुमराह कोई,

ना बदल पाए तुम्हारी चाह कोई ,

इक अनोखी रीत लिख दो साथियो !

नफरतों में प्रीत लिख दो साथियो !


जात भी है, धर्म भी है, पंथ भी !

हर तरह के देश में हैं ग्रंथ भी,

क्यूँ मगर इनके लिए लड़ते हैं हम,

बात पर अपनी ही क्यूँ अड़ते हैं हम ?

तुम लिखो एक प्रेम की पुस्तक नई,

इंसान की तुम जीत लिख दो साथियो !

नफरतों में प्रीत लिख दो साथियो !


फिर सुबह के गीत लिख दो साथियो !

नफरतों में प्रीत लिख दो साथियो !





7 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर सृजन ! वर्तमान समय में प्रीत के गीतों की बहुत ज़रूरत है मीना जी

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  2. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना

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