बुधवार, 14 फ़रवरी 2024

प्रेम

 प्रेम....
जब नया नया होता है, 
तब लगता है कि प्रेम है -
गुनगुनाना, लजाना, 
सिहरना, सिमटना
समझने की कोशिश,
कि हो क्या रहा है ?

फिर कुछ समय बाद लगता है -
प्रेम ये नहीं, प्रेम तो है -
रूठना - मनाना, 
झगड़ना - सताना, 
अधिकार जताना, जबरन बुलाना !

वक्त के साथ
फिर रूप बदलता है प्रेम का !
और लगने लगता है कि प्रेम है -
नयनों का सावन,
प्रतीक्षा की घड़ियाँ !
खोने का डर !
छिन जाने की आशंका !

समय के साथ साथ
प्रेम भी प्रौढ होता है
और नए अवतार में प्रकटता है !

अहसास होता है कि प्रेम है -
एक दूजे के हित की चिंता,
बिछोह के गम के साथ
जितना भी संग मिला, उसमें संतोष !
छोड़ देना हक की बातें !
'बस तुम खुश रहो' की कामना !

उम्र के एक मुकाम पर
पहुँचने के बाद,
बस यही लगता है कि प्रेम है  -
प्रार्थना, दुआ, सलामती की कामना
दो हृदयों का एक हो जाना,
और उनकी भावनाओं का भी।

ईश्वर तुम्हें हमेशा खुश रखे,
मौन दुआओं का असर 
सबसे अधिक होता है !!!




9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 15 फरवरी 2024 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. आपने बिलकुल सही कहा है, पर प्रेम अपने हर रूप में उतना ही सुंदर होता है, अति सुंदर सृजन !!

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  3. प्रेम का हर रूप बड़े ही प्रेम से प्रेम में रहकर व्यक्त किया है आपने...
    बहुत ही लाजवाब
    वाह!!!

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  4. प्रेम के हर पड़ाव पर उसके मर्म को समझा दिया आपने मीना जी, बेहद प्यारी अभिव्यक्ति सादर

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  5. मौन दुआओं का असर सबसे अधिक होता है,
    क्या खूब बात कही है, सार्थक और सच्ची रचना बहुत बधाई दिल से।

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