गुरुवार, 10 जून 2021

तारे हैं दूर आसमां में

तारे हैं दूर आसमां में 

और जमीं पे हम,

बस, इक सितारा छूने का 

अरमां लिए हुए।


सबको कहाँ मिलते हैं घर, 

वादी में गुलों की।

काँटों के घरौंदों में भी, 

रहना तो सीखिए।


अच्छा किया, तुमने मेरी 

वफा पे शक किया,

कुछ और सबक सीखने थे, 

सीख ही लिए।


इस मोड़ से ऐ जिंदगी,

चल राह बदल लें,

मिलने के जो मकसद थे,

सभी हमने जी लिए ।


उठ्ठी लहर सागर से, 

किनारे पे मर मिटी।

गहराइयों के राज 

किनारों ने पढ़ लिए।


क्यूँ इस तरहा से कैद में, 

कटती है जिंदगी,

हैं दर भी, दरीचे भी,

जरा खोल लीजिए। 


है उम्र के नाटक का, 

अभी अंक आखिरी।

ना भूल सकें लोग, 

इस तरहा से खेलिए। 






38 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ जून २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. है उम्र के नाटक का,

    अभी अंक आखिरी।

    ना भूल सकें लोग,

    इस तरहा से खेलिए। .... लाज़वाब!!!

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  3. 'उठी लहर सागर से
    किनारों पर मर मिटी
    गहराइयों के राज
    किनारों ने पढ़ लिए।'उत्कृष्ट रचना।

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीया उर्मिला सिंह जी।

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  4. उठ्ठी लहर सागर से,

    किनारे पे मर मिटी।

    गहराइयों के राज

    किनारों ने पढ़ लिए।

    वाह! हर बंद ही उत्कृष्ट है, सुंदर सृजन के लिए बधाई मीना जी!

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    1. उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीया अनिता जी।

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  5. अच्छा किया, तुमने मेरी

    वफा पे शक किया,

    कुछ और सबक सीखने थे,

    सीख ही लिए।

    यूँ तो इसे ग़ज़ल भी कहा जा सकता है ।। बस चार लाइन की जगह दो लाइन में बात कहीं जाय तो । ये शेर सबसे ज्यादा पसंद आया ।
    बाकी तो है ही बहुत खूब

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    1. उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीया संगीत दीदी।

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  6. सबको कहाँ मिलते हैं घर,

    वादी में गुलों की।

    काँटों के घरौंदों में भी,

    रहना तो सीखिए।

    वाह !! क्या बात है मीना जी,लाजबाब.....आज के इस दौर में ये सीखना ही होगा,सादर नमन मीना जी

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    1. उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका बहुत बहुत आभार प्रिय कामिनी

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  7. है उम्र के नाटक का,

    अभी अंक आखिरी।

    ना भूल सकें लोग,

    इस तरहा से खेलिए..वाह,जीवन के प्रति सार्थक प्रेरणा देती उत्कृष्ट रचना।बहुत बधाई मीना जी ।

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    1. उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका बहुत बहुत आभार जिज्ञासा जी

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  8. दर हैं दरीचे हैं ... खोलने की ज़रुरत है ...
    हर छंद बखूबी अपनी बात रखता हुआ ...
    लाजवाब ...

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    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    2. उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय सर।

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  9. ना भूल सकें लोग इस तरह खेलिए...
    क्या खूब!

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    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  10. उठ्ठी लहर सागर से,

    किनारे पे मर मिटी।

    गहराइयों के राज

    किनारों ने पढ़ लिए।

    वाह!!!
    लहर प्यार में मर मिट रही किनारों के प्यार से वास्ता ही नहीं... ।
    वाह!!!
    लाजवाब सृजन।

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  11. जीवन के प्रति सार्थक संदेश देती सुंदर रचना।

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  12. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२६-0६-२०२१) को 'आख़री पहर की बरसात'(चर्चा अंक- ४१०७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  13. इस मोड़ से ऐ जिंदगी,

    चल राह बदल लें,

    मिलने के जो मकसद थे,


    सभी हमने जी लिए ।


    वाह जय बात है

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  14. सभी आदरणीय स्नेहीजनों का उनकी सकारात्मक एवं उत्साहवर्धक टिप्पणियों एवं रचना की सराहना हेतु बहुत बहुत आभार। स्वास्थ्य ठीक ना होने के कारण आप सबके ब्लॉग पर नहीं आ पा रही हूँ। क्षमा चाहती हूँ। जल्दी ही लौटूँगी।

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  15. सबको कहाँ मिलते हैं घर वादी में गुलों की; काँटों के घरौंदों में भी रहना तो सीखिए। बहुत अच्छी बात कही है मीना जी आपने। आशा है, अब आपका स्वास्थ्य ठीक होगा।

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय जितेंद्र जी। अब ठीक हूँ। बस थायराइड बढ़ गया है। धन्यवाद।

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  16. सबको कहाँ मिलते हैं घर, वादी में गुलों की।
    काँटों के घरौंदों में भी, रहना तो सीखिए।
    बहुत खूब!!
    हृदयस्पर्शी और बेहतरीन सृजन मीना जी !

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपके अनमोल शब्दों का आदरणीय मीनाजी।

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