तारे हैं दूर आसमां में
और जमीं पे हम,
बस, इक सितारा छूने का
अरमां लिए हुए।
सबको कहाँ मिलते हैं घर,
वादी में गुलों की।
काँटों के घरौंदों में भी,
रहना तो सीखिए।
अच्छा किया, तुमने मेरी
वफा पे शक किया,
कुछ और सबक सीखने थे,
सीख ही लिए।
इस मोड़ से ऐ जिंदगी,
चल राह बदल लें,
मिलने के जो मकसद थे,
सभी हमने जी लिए ।
उठ्ठी लहर सागर से,
किनारे पे मर मिटी।
गहराइयों के राज
किनारों ने पढ़ लिए।
क्यूँ इस तरहा से कैद में,
कटती है जिंदगी,
हैं दर भी, दरीचे भी,
जरा खोल लीजिए।
है उम्र के नाटक का,
अभी अंक आखिरी।
ना भूल सकें लोग,
इस तरहा से खेलिए।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ जून २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार प्रिय श्वेता।
हटाएंहै उम्र के नाटक का,
जवाब देंहटाएंअभी अंक आखिरी।
ना भूल सकें लोग,
इस तरहा से खेलिए। .... लाज़वाब!!!
बहुत बहुत आभार आदरणीय विश्वमोहन जी।
हटाएं'उठी लहर सागर से
जवाब देंहटाएंकिनारों पर मर मिटी
गहराइयों के राज
किनारों ने पढ़ लिए।'उत्कृष्ट रचना।
बहुत बहुत आभार आदरणीया उर्मिला सिंह जी।
हटाएंउठ्ठी लहर सागर से,
जवाब देंहटाएंकिनारे पे मर मिटी।
गहराइयों के राज
किनारों ने पढ़ लिए।
वाह! हर बंद ही उत्कृष्ट है, सुंदर सृजन के लिए बधाई मीना जी!
उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीया अनिता जी।
हटाएंअच्छा किया, तुमने मेरी
जवाब देंहटाएंवफा पे शक किया,
कुछ और सबक सीखने थे,
सीख ही लिए।
यूँ तो इसे ग़ज़ल भी कहा जा सकता है ।। बस चार लाइन की जगह दो लाइन में बात कहीं जाय तो । ये शेर सबसे ज्यादा पसंद आया ।
बाकी तो है ही बहुत खूब
उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीया संगीत दीदी।
हटाएंसबको कहाँ मिलते हैं घर,
जवाब देंहटाएंवादी में गुलों की।
काँटों के घरौंदों में भी,
रहना तो सीखिए।
वाह !! क्या बात है मीना जी,लाजबाब.....आज के इस दौर में ये सीखना ही होगा,सादर नमन मीना जी
उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका बहुत बहुत आभार प्रिय कामिनी
हटाएं
जवाब देंहटाएंहै उम्र के नाटक का,
अभी अंक आखिरी।
ना भूल सकें लोग,
इस तरहा से खेलिए..वाह,जीवन के प्रति सार्थक प्रेरणा देती उत्कृष्ट रचना।बहुत बधाई मीना जी ।
उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका बहुत बहुत आभार जिज्ञासा जी
हटाएंदर हैं दरीचे हैं ... खोलने की ज़रुरत है ...
जवाब देंहटाएंहर छंद बखूबी अपनी बात रखता हुआ ...
लाजवाब ...
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हटाएंउत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय सर।
हटाएंना भूल सकें लोग इस तरह खेलिए...
जवाब देंहटाएंक्या खूब!
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हटाएंउठ्ठी लहर सागर से,
जवाब देंहटाएंकिनारे पे मर मिटी।
गहराइयों के राज
किनारों ने पढ़ लिए।
वाह!!!
लहर प्यार में मर मिट रही किनारों के प्यार से वास्ता ही नहीं... ।
वाह!!!
लाजवाब सृजन।
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हटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंजीवन के प्रति सार्थक संदेश देती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२६-0६-२०२१) को 'आख़री पहर की बरसात'(चर्चा अंक- ४१०७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत आभार अनीता जी
हटाएंइस मोड़ से ऐ जिंदगी,
जवाब देंहटाएंचल राह बदल लें,
मिलने के जो मकसद थे,
सभी हमने जी लिए ।
वाह जय बात है
बहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत सुन्दर लेखन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंसभी आदरणीय स्नेहीजनों का उनकी सकारात्मक एवं उत्साहवर्धक टिप्पणियों एवं रचना की सराहना हेतु बहुत बहुत आभार। स्वास्थ्य ठीक ना होने के कारण आप सबके ब्लॉग पर नहीं आ पा रही हूँ। क्षमा चाहती हूँ। जल्दी ही लौटूँगी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार। सादर।
हटाएंसबको कहाँ मिलते हैं घर वादी में गुलों की; काँटों के घरौंदों में भी रहना तो सीखिए। बहुत अच्छी बात कही है मीना जी आपने। आशा है, अब आपका स्वास्थ्य ठीक होगा।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय जितेंद्र जी। अब ठीक हूँ। बस थायराइड बढ़ गया है। धन्यवाद।
हटाएंसबको कहाँ मिलते हैं घर, वादी में गुलों की।
जवाब देंहटाएंकाँटों के घरौंदों में भी, रहना तो सीखिए।
बहुत खूब!!
हृदयस्पर्शी और बेहतरीन सृजन मीना जी !
बहुत बहुत धन्यवाद आपके अनमोल शब्दों का आदरणीय मीनाजी।
हटाएंउम्दा नज़्म ।
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