नेत्र भर आए और होंठ हँसते रहे,
प्रेम अभिनय से तुमको,कहाँ छ्ल सका ?
दो नयन अपनी भाषा में जो कह गए
वो किसी छंद में कोई कब लिख सका ?
प्रेम में कोई अश्रु गिरा आँख से,
और हथेली में उसको सहेजा गया।
उसको तोला गया मोतियों से मगर
मोल उसका अभी तक कहाँ हो सका ?
ना तो तुम दे सके, ना ही मैं ले सकी
प्रेम दुनिया की वस्तु, कहाँ बन सका ?
दो नयन अपनी भाषा में जो कह गए
वो किसी छंद में कोई कब लिख सका ?
गीत के सुर सजे, भाव नूपुर बजे,
किंतु मन में ना झंकार कोई उठी।
चेतना प्राण से, वेदना गान से,
प्रार्थना ध्यान से, कब अलग हो सकी ?
लाख पर्वत खड़े मार्ग को रोकने,
प्रेम सरिता का बहना कहाँ थम सका ?
दो नयन अपनी भाषा में जो कह गए
वो किसी छंद में कोई कब लिख सका ?
हो विदा की घड़ी में भी जिसका स्मरण
कब उसे काल भी, है अलग कर सका ?
था विरोधों का स्वर जब मुखर हो चला,
प्रेम सोने सा तपकर, निखरकर उठा।
चिर प्रतीक्षा में मीरा की भक्ति था वह,
प्रेम राधा का अभिमान कब बन सका ?
दो नयन अपनी भाषा में जो कह गए
वो किसी छंद में कोई कब लिख सका ?
प्रेम अभिनय से तुमको,कहाँ छ्ल सका ?
दो नयन अपनी भाषा में जो कह गए
वो किसी छंद में कोई कब लिख सका ?
प्रेम में कोई अश्रु गिरा आँख से,
और हथेली में उसको सहेजा गया।
उसको तोला गया मोतियों से मगर
मोल उसका अभी तक कहाँ हो सका ?
ना तो तुम दे सके, ना ही मैं ले सकी
प्रेम दुनिया की वस्तु, कहाँ बन सका ?
दो नयन अपनी भाषा में जो कह गए
वो किसी छंद में कोई कब लिख सका ?
गीत के सुर सजे, भाव नूपुर बजे,
किंतु मन में ना झंकार कोई उठी।
चेतना प्राण से, वेदना गान से,
प्रार्थना ध्यान से, कब अलग हो सकी ?
लाख पर्वत खड़े मार्ग को रोकने,
प्रेम सरिता का बहना कहाँ थम सका ?
दो नयन अपनी भाषा में जो कह गए
वो किसी छंद में कोई कब लिख सका ?
हो विदा की घड़ी में भी जिसका स्मरण
कब उसे काल भी, है अलग कर सका ?
था विरोधों का स्वर जब मुखर हो चला,
प्रेम सोने सा तपकर, निखरकर उठा।
चिर प्रतीक्षा में मीरा की भक्ति था वह,
प्रेम राधा का अभिमान कब बन सका ?
दो नयन अपनी भाषा में जो कह गए
वो किसी छंद में कोई कब लिख सका ?
मुखड़ा तो बुलंद है.
जवाब देंहटाएंभावों को बड़ी सटीक ढंग से प्रस्तुत किया गया है.
अंतर्मन को छूती हुई रचना.
बधाई.
सादर आभार आदरणीय अयंगर सर
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय जोशी सर
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 24/03/2019 की बुलेटिन, " नेगेटिव और पॉज़िटिव राजनीति - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसादर आभार बुलेटिन में शामिल करने के लिए
हटाएंचिर प्रतीक्षा में मीरा की भक्ति था वह,
जवाब देंहटाएंप्रेम राधा का अभिमान कब बन सका ?
दो नयन अपनी भाषा में जो कह गए
वो किसी छंद में कोई कब लिख सका ?
प्रिय मीना बहन -- अविरल आत्मीयता भाव से भरी सुंदर भावपूर्ण रचना .जिसकी सराहना के शब्द नहीं मेरे पास | बहुत दिनों की ख़ामोशी से एक हीरक रचना सृजित हुई है जो हर तरह से प्रशंसनीय और मर्म को छूने वाली है |सस्नेह शुभकामनायें और हार्दिक अभिनन्दन | एकांतवास के बाद आपका पुनः स्वागत है |
आपके शब्दों से कितना स्नेह टपकता है !!! मन तृप्त हो गया। धन्यवाद रेणु बहन। स्नेह।
हटाएंवाह...।। मीना जी बहुत ही सुंदर और मन को छू लेने वाली रचना है।" दो नयन अपनी भाषा में जो कह गए वो किसी छंद में कोई कब लिख सका।" प्रेम का एहसास कराती यह रचना निस्वार्थ प्रेम और विश्वास को दर्शाती है... आज आपकी कलम बहुत खुश होगी ☺️ लिखती रहा करिए ..!!
जवाब देंहटाएंये मेरे ही नाम से किसने कमेंट किया है, समझ नहीं पा रही हूँ। आपका सादर आभार। कृपया अपना नाम बताएँ।
हटाएंNamaste Meena ji yh Mai hu Isha..mera Phone hang ho rha tha isliye apke Naam se comment chla gya,☺️☺️
हटाएंदो नयन अपनी भाषा में जो कह गए
जवाब देंहटाएंवो किसी छंद में कोई कब लिख सका ?
बहुत बढ़िया, मीना दी।
सादर आभार ज्योति जी
हटाएंअगले सप्ताह का विषय आपकी रचना से
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत आभार आदरणीया यशोदा दीदी
हटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंसादर आभार उषा किरण जी। ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार अनुराधा जी
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरूवार 28 मार्च 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय रवींद्र जी। सादर।
हटाएंसच में आपकी इतनी हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति पर क्या सराहना लिखे समझ नहीं पा रहे हैं बहुत दिन के बाद.आपकी रचना पढ़कर बहुत अच्छा लग रहा दी..
जवाब देंहटाएंमन छूती रचना...बहुत अच्छी लगी👌👌
बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय श्वेता।
हटाएंबहुत ख़ूबसूरत मीनाजी. दिल में बहुत तड़प और बहुत दर्द का एहसास होते हुए भी इश्क़ का जूनून थमना तो जानता ही नहीं है. मीरा से बहुत पहले सूफ़ी-साधिका राबिया, दीवानगी की हदें पार कर इश्क़-ए-हक़ीक़ी तक पहुँची थी. लेकिन इस एहसास को कोई राधा, कोई राबिया या कोई मीरा लब्ज़ों में बयान नहीं कर सकती.
जवाब देंहटाएंजी सर, आपके जितना ना तो ज्ञान है, ना अनुभव। आपकी ब्लॉग पर उपस्थिति उत्साहित कर देती है। बहुत बहुत धन्यवाद।
हटाएंना तो तुम दे सके, ना ही मैं ले सकी
जवाब देंहटाएंप्रेम दुनिया की वस्तु, कहाँ बन सका ?
वाह!!!!
बहुत ही अद्भुत... अप्रतिम... एवं लाजवाब हमेशा की तरह...
सस्नेह धन्यवाद सुधाजी
हटाएंएक बेहतरीन पोस्ट लिखने के लिए धन्यवाद Swipe Lock Disabled Problem Fix
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आपका। सादर।
हटाएंबेहद सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय सिन्हाजी।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
अद्भुत मीना जी निशब्द हूं मैं आपकी इस अभिव्यक्ति पर।
जवाब देंहटाएंअनुपम।
बहुत सुन्दर आदरणीया
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर मीना जी ! रचना का हर शब्द हर भाव मन पर अमिट छाप छोड़ता हुआ अपना आधिपत्य कर लेता है ! हार्दिक बधाई स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंआदरणीया साधनाजी, कुसुमजी, अनिताजी, प्रिय श्वेता, आप सबकी हृदय से आभारी हूँ।
जवाब देंहटाएंप्रिय मीना ढूढ़कर आज इस रचना तक पहुँच जो रूहानी एहसास जगा वह शब्दों में लिखा नहीं जाता | किन्ही बहुत विशेष पलों में रची जाती हैं ऐसी अनुभ्तियों की गाथा | बहुत बहुत शुभकामनाएं और स्नेह | यूँ ही आगे बढती रहो |
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-2-22) को 'तब गुलमोहर खिलता है'(चर्चा अंक-4346)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
शब्दों में सादगी भावों की अथा गहराई।
जवाब देंहटाएंदो नयन अपनी भाषा में जो कह गए
वो किसी छंद में कोई कब लिख सका ?.. वाह!
सराहनीय सृजन दी।
सादर
मीना जी, आपकी कविताओं का भाव-सौन्दर्य मनोहारी है.
जवाब देंहटाएं