शनिवार, 24 सितंबर 2016

माँ मुझसे मिलने आती है...

माँ मुझसे मिलने आती है....

दुआओं के खजाने लुटाती है,
काँपते हाथों से
मेरा सिर सहलाती है,
मूक निगाहों से भी
कितना कुछ कह जाती है...
माँ मुझसे मिलने आती है....

लाती है पिटारे भरकर
भूली - बिसरी यादों के,
झुर्रियों में छुपाती है
कुछ दर्द झूठे नातों के,
"तू खुश तो मैं भी खुश"
ये कहकर माँ हँस जाती है...
माँ मुझसे मिलने आती है...

तुझको मैं पढ़ने से रोकती थी
बेटा, बात-बात पर मैं तुझे टोकती थी,
अच्छा हुआ, अपनी
ज़िद पर तू अड़ गई
मैं तो अनपढ़ रही
पर बेटी तू तो पढ़ गई !
यही बात बार-बार, 
कहकर पछताती है...
माँ मुझसे मिलने आती है...

मेरा भी मन है माँ
मैं तेरी सेवा करूँ,
मेरे साथ तू रह या
तेरे साथ मैं रहूँ ,
किसने बनाए रिवाज़
दूर हमें करने के ,
बेटियों को पाल-पोस
घर से विदा करने के,
साथ में ना बेटी के, 
माँ कोई रह पाती है...
माँ मुझसे मिलने आती है...
--------------------------------------------------

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 20 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरा भी मन है माँ
    मैं तेरी सेवा करूँ,
    मेरे साथ तू रह या
    तेरे साथ मैं रहूँ ,
    किसने बनाए रिवाज़
    दूर हमें करने के ,
    बेटियों को पाल-पोस
    घर से विदा करने के,
    साथ में ना बेटी के,
    माँ कोई रह पाती है...
    माँ मुझसे मिलने आती है...
    आँखें नम कर दी सीधे दिल को छू गयी...
    लाजवाब भावाभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं