रविवार, 6 मार्च 2022

अश्वत्थामा

युद्ध पहले भी होते आए हैं

आगे भी होते रहेंगे,

फर्क इतना है कि

पहले होते थे युद्ध देवों और दानवों में

अथवा मानवों और दानवों में।

मानव - मानव में पहला युद्ध

शायद महाभारत ही रहा हो,

उस युद्ध के सारे निशान

मिट भी गए हों समय के साथ,

परंतु .....

एक अश्वत्थामा अपने माथे पर जख्म लिए 

भटक रहा है युगों से ।

बदले की आग में उसका

विवेक भी जलकर राख हो गया था।

युद्ध में जो उसे ठीक लगा,

उसने किया था, बिना सोचे विचारे ! 

और आज होनेवाले युद्ध, 

जो मानव मानव में हो रहे, 

उनका परिणाम  क्या होगा ?

फिर एक बार

कोई अश्वत्थामा पाप लेगा अपने सिर,

होकर दुर्बुद्धि का शिकार

ना जाने कौन अश्वत्थामा

चला दे परमाणु हथियार निर्दोषों पर ।

युद्ध समाप्ति के बाद

ना जाने कितने ही अश्वत्थामा

अपने तन, मन और आत्मा पर जख्म लिए

भटकेंगे सारी धरा पर युगों तक !


29 टिप्‍पणियां:

  1. युद्ध पर बहुत सार्थक और भावपूर्ण चिन्तन प्रिय मीना।युद्ध से सदैव मानवता क्षत-विक्षत हुई है।दो राष्ट्रों के बीच युद्ध हो,तब भी उसके केंद्र में मात्र दो मानवों या कहें तानाशाहों का अहं ही टकराता है।आदिम सभ्यताओं में शायद युद्ध इतने भयावह नहीं होते होंगे, जितने आज विज्ञान पर आधारित युद्ध।पौराणिक पात्र अश्वत्थामा ने जाने किस कृतज्ञता,प्रतिबद्धता, मोह या फिर स्वामिभक्ति के अधीन किशोर पंच-पाण्डवों की निर्दोष हत्या का पाप कर लेकर युगों का शाप अपने सर पर ओढ़ लिया था।सच है,कहीं आज भी कोई विवेकहीन
    अथवा स्वामी के प्रति अंध आस्थावानऔर निष्ठावान अश्वत्थामा परमाणु शक्ति का प्रयोग कर असख्य निरीह और निर्दोष लोगों को मौत के मुँह में ना धकेल दे।मानवता के प्रति एसा अपराध अक्ष्म्य तो है ही,निश्चित रूप से इसकी कल्पना मात्र भी रौंगटे खड़े कर देती है।फिर कोई भावी शापित अश्वत्थामा युगों-युगांतर तक भटकता भी रहे,इस घाव को मरहम ना लग पायेगा।चिंतनपरक बेहतरीन रचना के लिए साधुवाद।

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    1. रचना पर सार्थक विस्तृत टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार प्रिय रेणु।

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  2. बहुत ही विचारोत्तेजक कविता !
    ब्रह्मास्त्र चलाया तो इस बार स्वयं अश्वत्थामा भी जीवित नहीं बचेगा.

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  3. कितना कुछ कह गई आपकी कविता । बुध्दिजीवी और कूटनीतिज्ञ पता नहीं क्यों विवेकहीन हो कर अश्वत्थामा बन जाते हैं ।

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  4. ना जाने कितने ही अश्वत्थामा

    अपने तन, मन और आत्मा पर जख्म लिए

    भटकेंगे सारी धरा पर युगों तक ! वाक़ई युद्ध की भयावहता से अनगिनत जीवन प्रभावित होते हैं, आने वाली कितनी पीढ़ियाँ भी प्रभावित होती हैं, लेकिन इतने हथियारों का ज़ख़ीरा जब देश एकत्र कर रहे होते हैं तो एक न एक दिन उन्हें उपयोग में भी लाएँगे ही, हथियारों की यह दौड़ अब ख़त्म होनी चाहिए, इससे सभी देश शिक्षा और स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान दे सकेंगे

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    1. विस्तृत एवं सार्थक टिप्पणी हेतु सादर आभार आदरणीया अनिताजी

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  5. बहुत सुंदर और सार्थक सृजन।

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (8-3-22) को "महिला दिवस-मौखिक जोड़-घटाव" (चर्चा अंक 4363)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  8. बहुत ही सुंदर, सारगर्भित और आज के परिवेश की एक अत्यंत सार्थक रचना!

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    1. रचना के समर्थन एवं आशीष के लिए सादर आभार आपका आदरणीय विश्वमोहन जी

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  9. विचारोत्तेजक लेख, सारगर्भित!अश्वत्थामा के माध्यम से गहन बात कहती सार्थक कविता।
    महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

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    1. आदरणीया कुसुमजी, सादर आभार एवं शुभकामनाएँ आपको भी।

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  10. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 9 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    !

    अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्

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    1. आदरणीया पम्मीजी, हृदयपूर्वक आभार आपका।

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  11. अश्वत्थामा के बहाने युदेध की विभीषिका को दर्शाती गंभीर रचना .

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    1. आपका ब्लॉग पर आना और कुछ कहना मेरी रचना की सार्थकता दर्शाता है आदरणीया दीदी। इस आशीष के लिए सादर आभार एवं प्रणाम।

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  12. युद्ध से विचलित मन से निकली शानदार रचना । संवेदनशील रचना ....

    युद्ध ,
    जो होते आये हैं
    आगे भी होते रहेंगे
    क्यों कि
    ये लड़ाई है
    वर्चस्व की ,
    नहीं चाहता कोई
    अपने आगे
    किसी को बढ़ते देखना ।
    या फिर है गुरुर कि
    नहीं रहे कोई
    हमारे जैसे शक्तिशाली ,
    पहले युद्धों में
    इस्तेमाल होते थे
    अस्त्र भी
    जिसका प्रभाव दिखता था
    आमने सामने
    लेकिन आज के युद्ध
    आश्रित हैं केवल
    शस्त्रों के ,
    जिनका प्रभाव
    कितनों पर और
    कैसा पड़ना है
    ये बस
    लगाया जा सकता है
    केवल अनुमान ही ।
    अपने दम्भ में चूर
    शक्तिशाली व्यक्ति
    अश्वत्थामा बने
    यूँ ही घूमते रहेंगे
    सदियों तक
    भले ही सशरीर
    न रहें वो इस संसार में ।

    तुम्हारी रचना पढ़ते हुए यूँ ही से भाव .....

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    1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति प्रिय दीदी।अश्वत्थामा के समानांतर एक और सफल अभिव्यक्ति 👌👌👌🙏🙏

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  13. युद्ध पर लिखी अच्छी और प्रभावी रचना

    सादर

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  14. अब तो अश्वत्थामा हतो, हतः ही कहना होगा।
    *नरो वा कुंजरः*
    की जरूरतभी नहीं रहेगी।

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  15. युद्ध समाप्ति के बाद

    ना जाने कितने ही अश्वत्थामा

    अपने तन, मन और आत्मा पर जख्म लिए

    भटकेंगे सारी धरा पर युगों तक !आज का यथार्थ यही कहता दिखाई दे रहा है कि मनुष्य अश्वस्थामा बनाने को आतुर है क्यों न चारो तरफ विनाश ही दिखाई दे ।
    चिंतनशील मन से निकली उत्कृष्ट रचना,बहुत बधाई मीना जी ।

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  16. अध्वधामा के माध्यम से यतार्थ व्यक्त करती सुंदर रचना,मीना दी।

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  17. होकर दुर्बुद्धि का शिकार

    ना जाने कौन अश्वत्थामा

    चला दे परमाणु हथियार निर्दोषों पर ।

    युद्ध समाप्ति के बाद
    सही कहा परमाणु हथियार से तो कई पीढियों तक ना जाने कितने अश्वस्थामा शकुनि जैसे तन मन के अपाहिज जन्मेंगे धरा बन्ध्या होगी परन्तु इस वर्चस्व की लड़ाई में इस सबकी परवाह किसे है...
    बहुत ही चिन्तनपरक एवं विचारणीय...
    सारगर्भित सृजन।

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